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________________ दसवाँ चरमपद] [२७ षट्प्रदेशीस्कन्ध में पन्द्रह भंग - इसमें ११ भंग तो पंचप्रदेशीस्कन्ध में उक्त हैं, वे पूर्वयुक्ति के अनुसार समझ लेने चाहिए। शेष चार भंग इस प्रकार हैं-आठवाँ चौदहवाँ, उन्नीसवाँ और छव्वीसवाँ भंग। आठवाँ भंग है-एक चरम और दो (अनेक) अचरमरुप। वह इस प्रकार घटित होता है-जब कोई षट्प्रदेशीस्कन्ध छह आकाशप्रदेशों में इस प्रकार की स्थापना [oooo के अनुसार समश्रेणी से एकाधिक अवगाहन करता है, तब समश्रेणी में स्थित चार परमाणु पहले कहे अनुसार चरम और मध्यवर्ती दो परमाणु अचरम कहलाते हैं। दोनों का समूहरूप षट्प्रदेशीस्कन्ध भी कथंचित् एक चरम और दो अचरमरुप कहा जा सकता है। चौदहवाँ भंग-दो चरम और दो अवक्तव्य इस प्रकार घटित होता है-जब कोई षट्प्रदेशी स्कन्ध, इस प्रकार की स्थापना ०° के अनुसार छह आकाशप्रदेशों में समश्रेणी और विश्रेणी से अवगाहन करता है, तब उनमें से दो परमाणु तो समश्रेणी में स्थित आकाशप्रदेशों में ऊपर और दो नीचे रहते हैं, एक परमाणु दोनों श्रेणियों के मध्यभाग की समश्रेणी में स्थित प्रदेश में रहता है, और एक परमाणु दोनों के ऊपर विश्रेणी में रहता है। ऐसी स्थिति में ऊपर के दो परमाणु और नीचे के दो परमाणु भी चरम कहलाते हैं, ये दोनों चरम अनेक चरम कहलाए तथा दोनों अलग-अलग रहे हुए दोनों परमाणु दो अवक्तव्य कहलाये। इन सबका समुदायरुप षट्प्रदेशीस्कन्ध कथंचित् अनेक चरमरुप, अनेक अवक्तव्यरुप कहा जा सकता है। उन्नीसवाँ भंग-चरम-अचरम अवक्तव्य भी इसमें घटित हो सकता हैं । वह इस प्रकार-जब षट्प्रदेशी स्कन्ध छह आकाशप्रदेशों में, इस स्थापना के अनुसार ooo एक परिक्षेप से विश्रेणीस्थ एकाधिक को अवगाहन करता है, तब एकवेष्टक (एक को घेरने वाले) चार परमाणु पूर्वोक्त युक्ति के अनुसार चरम होते हैं, मध्यवर्ती एक अचरम और विश्रेणीस्थ एक परमाणु अवक्तव्य होता है। इनके समूहरुप षट्प्रदेशात्मकस्कन्ध को चरम-अचरम-अवक्तव्य कहा जा सकता है। षट्प्रदेशीस्कन्ध में २६ वाँ भंग-अनेक चरम-अनेक अचरम-अनेक अवक्तव्यरुप भी घटित होता है। उसकी युक्ति इस प्रकार है - जब षट्प्रदेशीस्कन्ध इस स्थापना के अनुसार [ ]o छह आकाशप्रदेशों में समश्रेणी से और विश्रेणी से अवगाहन करता है, तब आदि और अन्त के प्रदेशावगाढ़ दो चरम तथा मध्यप्रदेशावगाढ़ दो अचरम एवं विश्रेणीस्थ दो प्रदेशों में पृथक्-पृथक् अवगाढ़ एकाकी परमाणु होने से दोनों अवक्तव्य कहलाते हैं। इस प्रकार समुदितरूप से षट्प्रदेशीस्कन्ध को कथंचित् अनेक चरम-अनेक अचरम-अनेक अवक्तव्यरुप कहा जा सकता है। इस प्रकार षट्प्रदेशीस्कन्ध में पूर्वोक्त १५ भंग होते है, शेष ११ भंग इसमें नहीं होते। सप्तप्रदेशीस्कन्ध में १७ भंग-इस स्कन्ध में पूर्वोक्त षट्प्रदेशीस्कन्ध में कहे गए १५ भंग तो उसी प्रकार हैं। उनका विश्लेषण पूर्वोक्त युक्तियों के अनुसार कर लेना चाहिये। इस स्कन्ध में दो भंग विशेष हैं । वे
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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