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________________ एगवीसइमं : ओगाहणसंठाणपयं इक्कीसवाँ : अवगाहना-संस्थान - पद प्राथमिक यह प्रज्ञापनासूत्र का इक्कीसवाँ अवगाहना- संस्थान - पद है। + इस पद में शरीर के सम्बन्ध में विविध पहलुओं से विचारणा की गई है। + पूर्वपदों से इस पद में अन्तर - बारहवें 'शरीरपद' में, सोलहवें 'प्रयोगपद' में भी शरीर-सम्बन्धों चर्चा की गई है, परन्तु शरीरपद में नारकादि चौवीस दण्डकों में पांच शरीरों में से कौन-कौन सा - शरीर किसके होता है ? तथा बद्ध और मुक्त शरीरों की द्रव्य, क्षेत्र और काल की अपेक्षा से कितनी संख्या है ? इत्यादि विचारणा गई है और सोलहवें प्रयोगपद में मन, वचन और काय के आधार से आत्मा के द्वारा होने वाले व्यापार एवं गतियों का वर्णन है । प्रस्तुत अवगाहना - संस्थान - पद में शरीर के प्रकार, आकार, प्रमाण, पुद्गलचयोपचय, एक साथ एक जीव में पाये जाने वाले शरीरों की संख्या, शरीरगत द्रव्य एवं प्रदेशों का अल्पबहुत्व एवं अवगाहना के अल्पबहुत्व की सात द्वारों में विस्तृत चर्चा की गई है ।" + + १. २. शरीर आत्मा का सबसे निकटवर्ती धर्मसाधना में सहायक है । आत्मविकास, जप, तप, ध्यान, सेवा आदि सब स्वस्थ एवं सशक्त शरीर से ही हो सकते हैं । इनमें आहारकशरीर इतना चमत्कारी, हल्का और दिव्य, भव्य एवं स्फटिक-सा उज्जवल होता है कि किसी प्रकार की शंका उपस्थित होने पर चतुर्दशपूर्वधारी मुनि उक्त शरीर को तीर्थकर के पास भेजता है । वह उसके माध्यम से समाधान पा लेता है । उसके पश्चात् शीघ्र ही वह शरीर पुनः औदारिक शरीर में समा जाता है। प्रस्तुत पद में सात द्वार हैं- (१) विधिद्वार, (२) संस्थानद्वार, (३) प्रमाणद्वार, (४) पुद्गलचयनद्वार, (५) शरीरसंयोगद्वार, (६) द्रव्य - प्रदेशाल्प - बहुत्वद्वार और (७) शरीरावगाहनाल्पबहुत्वद्वार । प्रथम विधिद्वार में शरीर के मुख्य ५ प्रकार हैं- औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण । उपनिषदों में आत्मा के ५ कोषों की चर्चा है । उनमें से सिर्फ अन्नमयकोष के साथ औदारिक शरीर की तुलना हो सकती है । सांख्य आदि दर्शनों में अव्यक्त, सूक्ष्म या लिंग शरीर बताया गया है, जिसकी तुलना जैनसम्मत पण्णवणात्तं भा. २, पृ. ८८ तथा १०१ - १०२ वही, पृ. ८९
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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