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________________ बीसवाँ अन्तक्रियापद ] परिव्वायगाणं किब्बिसियाणं तिरिच्छियाणं आजीवियाणं आभिओगियाणं सलिंगीणं दंसणवादण्णगाणं देवलोगेसु उववज्जमाणाणं कस्स कहिं उववाओ पण्णत्तो ? [ ४४५ गोयमा ! अस्संजयभवियदव्वदेवाणं जहण्णेणं भवणवासीसु उक्कोसेणं उवरिमगेवेज्जगेसु, अविराहियसंजमाणं जहणणेणं सोहम्मे कप्पे उक्कोसेणं सव्वट्ठसिद्धे, विराहियसंजमाणं जहण्णेणं भवणवासीसु उक्कोसेणं सोहम्मे कप्पे, अविराहियसंजमासंजमाणं जहण्णेणं सोहम्मे कप्पे उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे, विराहियसंजमासंजमाणं जहण्णेणं भवणवासीसु उक्कोसेणं जोइसिएसु, असण्णीणं जहणं भवणवासीसु उक्कोसेणं वाणमंतरेसु, तावसाणं जहण्णेणं भवणवासीसु उक्कोसेणं जोइसिएसु, कंदप्पियाणं जहणणेणं भवणवासीसु उक्कोसेणं सोहम्मे कप्पे, चरग-परिव्वायगाणं जहणणेणं भवणवासीसु उक्कोसेणं बंभलोए कप्पे, किब्बिसियाणं जहण्णेणं सोहम्मे कप्पे उक्कोसेणं लंतए कप्पे, तेरिच्छियाणं जहण्णेणं भवणवासीसु उक्कोसेणं सहस्सारे कप्पे, आजीवियाणं जहण्णेणं भवणवासीसु उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे, एवं आभिओगाण वि, सलिंगीणं दंसणवावप्णगाणं जहण्णेणं भवणवासीसु उक्कोसेणं उवरिमगेवेज्जएसु । [१४७० प्र.] भगवन् ! असंयत भव्य - द्रव्यदेव ( अर्थात् जो असंयमी आगे जाकर देव होने वाले हैं जिन्होंने संयम की विराधना नहीं की है जिन्होंने संयम की विराधना की है, जिन्होंने संयमासंयम की विराधना नहीं की है, (तथा) जिन्होंने संयमासंयम की विराधना की है, जो असंज्ञी हैं, तापस हैं, कान्दर्पिक हैं, चरक - परिव्राजक हैं, किल्विषिक हैं, तिर्यञ्च गाय आदि पाल कर आजीविका करने वाले हैं अथवा आजीविकमतानुयायी हैं, जो अभियोगिक (विद्या, मंत्र, तंत्र आदि अभियोग करते) हैं, जो स्वलिंगी (समान वेष वाले) साधु हैं तथा जो सम्यग्दर्शन का वमन करने वाले ( सम्यग्दर्शनव्यापन्न) हैं, ये जो देवलोकों में उत्पन्न हों तो (इनमें से) किसका कहाँ उपपात कहा गया है ? | [उ.] असंयत भव्य-द्रव्यदेवों का उपपाद जघन्य भवनवासी देवों में और उत्कृष्ट उपरिम ग्रेवेयक देवों में हो सकता है । जिन्होंने संयम की विराधना नहीं की है, उनका उपपाद जघन्य सौधर्मकल्प में और उत्कृष्ट सर्वार्थसिद्ध में हो सकता है । जिन्होंने संयम की विराधना की है, उनका उपपात जघन्य भवनपतियों में, और उत्कृष्ट सौधर्मकल्प में होता है । जिन्होंने संयमासंयम की विराधना नहीं की है, उनका उपपात जघन्य सौधर्मकल्प में और उत्कृष्ट अच्युतकल्प में होता है । जिन्होने संयमासंयम की विराधना की है, उनका उपपाद जघन्य भवनपतियों में और उत्कृष्ट ज्योतिष्कदेवों में होता है । असंज्ञी साधकों का उपपात जघन्य भवनपतियों में और उत्कृष्ट वाणव्यन्तर देवों में होता है । तापसों का उपपाद जघन्य भवनवासीदेवों में और उत्कृष्ट ज्योतिष्कदेवों' में, कान्दर्पिकों का उपपात जघन्य भवनपतियों में, उत्कृष्ट सौधर्मकल्प में, चरक - परिव्राजकों का उपपात जघन्य भवनपतियों में और उत्कृष्ट ब्रह्मलोककल्प में तथा किल्विषिकों का उपपात जघन्य • सौधर्मकल्प में और उत्कृष्ट लान्तककल्प में होता है । तैरश्चिकों का उपपात जघन्य भवनवासियों में और उत्कृष्ट सहस्रारकल्प में, आजीविकों का उपपात जघन्य भवनपतियों में और उत्कृष्ट उच्युतकल्प में होता है,
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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