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________________ दसवाँ चरमपद] |२३ तेवीस चउव्वीसो पणुवीसइमो य पंचमए ॥१८७॥ बिचउत्थ पंच छट्टे पणरस सोलं च सत्तरऽद्वारं। वीसेक्कवीस बावीसगं च वजेज छ?म्मि॥१८८॥ बि चउत्थ पंच छटुं पण्णर सोलं च सत्तरऽट्ठारं। बावीसइमविहूणा सत्तपदेसम्मि खंधम्मि ॥१८९॥ बि चउत्थ पंच छटुं पण्णर सोलं च सत्तरऽट्ठारं। एते वजिय भंगा सेसा सेसेसु खंधेसु॥१९०॥ [७९०. संग्रहणीगाथाओं का अर्थ--] परमाणुपुद्गल में तृतीय (अवक्तव्य) भंग होता है। द्विप्रदेशीस्कन्ध में प्रथम (चरम) और तृतीय (अवक्तव्य) भंग होते हैं । त्रिप्रदेशीस्कन्ध में प्रथम, तीसरा, नौवाँ और ग्यारहवां भंग होता है। चतुःप्रदेशीस्कन्ध में पहला, तीसरा, नौवाँ, दसवाँ, ग्यारहवाँ, बारहवाँ और तेईसवाँ भंग समझना चाहिए। पंचप्रदेशीस्कन्ध में प्रथम, तृतीय, सप्तम, नवम, दशम, एकादश, द्वादश, त्रयोदश, तेईसवाँ चौवीसवाँ और पच्चीसवाँ भंग जानना चाहिए ॥१८५, १८६, १८७॥ षट्प्रदेशीस्कन्ध में द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, छठा, पन्द्रहवाँ, सोलहवाँ, सत्रहवाँ, अठारहवाँ, बीसवाँ, इक्कीसवाँ और बाईसवाँ छोड़कर, शेष भंग होते हैं ॥१८८ ॥ सप्तप्रदेशीस्कन्ध में दूसरे, चौथे, पाँचवें, छठे, पन्द्रहवें सोलहवें, सत्रहवें, अठारहवें और बाईसवें भंग के सिवाय शेष भंग होते हैं ॥१८९॥ शेष सब स्कन्धों (अष्टप्रदेशी से लेकर संख्यातप्रदेशी, असंख्यातप्रदेशी और अनन्तप्रदेशी स्कन्धों) में दूसरा, चौथा, पाँचवाँ, छठा, पन्द्रहवाँ, सोलहवाँ, सत्रहवाँ, अठारहवाँ, इन भंगों को छोड़कर, शेष भंग होते हैं ॥१९०॥ _ विवेचन - परमाणु से अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक की चरमाचरमादि संबन्धी वक्तव्यता - प्रस्तुत दस सूत्रों में पूरमाणुपुद्गल, द्विप्रदेशी से अष्टप्रदेशी स्कन्ध तथा संख्यात-असंख्यात-अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक के चरम, अचरम और अवक्तव्य भंगों की प्ररूपणा की गई है। छव्वीस भंगों की अपेक्षा से चरम, अचरम और अवक्तव्य का विचार-प्रस्तुत छव्वीस भंग इस प्रकार हैं - असंयोगी ६ भंग-१. चरम, २. अचरम, ३. अवक्तव्य, (एकवचनान्त), (बहुवचनान्त) ४. अनेक चरम, ५. अनेक अचरम, ६. अनेक अवक्तव्य। द्विकसंयोगी तीन चतुर्भंगी-१२ भंग-प्रथम चतुर्भंगी७ एक चरम और एक अचरम, ८. एक चरम-अनेक अचरम, ९. अनेक चरम-एक अचरम, १० अनेक चरमअनेक अचरम। द्वितीय चतुर्भंगी-११. एक चरम-एक अवक्तव्य, १२. एक चरम-अनेक अवक्तव्य, १३. अनेक चरम-एक अवक्तव्य, १४. अनेकचरम-अनेक अवक्तव्य। तृतीय चतुर्भंगी-१५. एक अचरम-एक
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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