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[प्रज्ञापनासूत्रं
[१३३५ प्र.] भगवन् ! सलेश्यजीव सलेश्य-अवस्था में कितने काल तक रहता है ?
[१३३५ उ.] गौतम ! सलेश्य दो प्रकार के कहे गए हैं । वे इस प्रकार- (१) अनादि-अपर्यवसित और (२) अनादि-सपर्यवसित।
१३३६. कण्हलेसे णं भंते ! कण्हलेसे त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तमब्भइयाई। [१३३६ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्या वाला जीव कितने काल तक कृष्णलेश्या वाला रहता है ?
[१३३६ उ.] गौतम ! (वह) जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम तक (लगातार कृष्णलेश्या वाला रहता है)।
१३३७. णीललेसे णं भंते ! णाीललेसे त्ति० पुच्छा. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहूत्तं, उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं पलिओवमासंखेजइभागब्भइयाई। [१३३७ प्र.] भगवन् ! नीललेश्या वाला जीव कितने काल तक नीललेश्या वाला रहता है ?
[१३३७ उ.] गौतम ! (वह) जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टतः पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागरोपम तक (लगातार नीललेश्या वाला रहता है)।
१३३८. काउसस्से णं० पुच्छा ?
गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि सागरोवमाइं पलिओवमासंखेज्जइभागब्भइयाई।
[१३३८ प्र.] भगवन् ! कापोतलेश्यावान् जीव कितने काल तक कापोतलेश्या वाला रहता है ?
[१३३८ उ.] गौतम ! (वह) जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक तीन सागरोपम तक (कापोतलेश्या वाला लगातार रहता है)।
१३३९. तेउलेस्सेणं० पुच्छाा?
गोयमा ! जहण्णेणां अंतोमुहत्तं, उक्काोसेणं दो सागरोवमाइं पलिओवमासंखेज्जइभागब्भइयाई।
[१३३९ प्र.] भगवन् ! तेजोलेश्यावान् जीव कितने काल तक तेजोलेश्या वाला रहता है ?
[१३३९ उ.] गौतम ! (वह) जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दो सागरोपम तक (तेजोलेश्यायुक्त रहता है)।
१३४०. पम्हलेस्से णं० पुच्छा?