________________
३६२]
[प्रज्ञापनासूत्रं
में (समझना चाहिए।)
१२७५. पंचेंदिए णं भंते ! पंचेंदिए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहूत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसहस्सं सातिरेगं । . [१२७५ प्र.] भगवन् ! पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय के रूप में कितने काल तक रहता है ?
[१२७५ उ.] गौतम ! (वह) जघन्यः अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्टतः सहस्रसागरोपम से कुछ अधिक (काल तक पंचेन्द्रिय रूप में रहता है।)
१२७६. अणिदिए णं ० पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । [१२७६ प्र.] भगवन् ! अनिन्द्रिय (सिद्ध) जीव कितने काल तक अनिन्द्रिय बना रहता है? [१२७६ उ.] गौतम ! (अनिन्द्रिय) सादि-अनन्त (काल तक अनिन्द्रियरूप में रहता है।) १२७७. सइंदियअपजत्तए णं भंते ! ० पुच्छा? गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं । [१२७७ प्र] भगवन् ! सेन्द्रिय-अपर्याप्तक कितने काल तक सेन्द्रिय-अपर्याप्तरूप में रहता है ? .
[१२७७ उ.] गौतम ! (वह) जघन्यतः भी और उत्कृष्टतः भी अन्तर्मुहूर्त तक (सेन्द्रिय-अपर्याप्तरूप में रहता है।)
१२७८. एवं जाव पंचेंदियअपजत्तए ।
[१२७८] इसी प्रकार (एकेन्द्रिय-अपर्याप्तक से लेकर) यावत् पंचेन्द्रिय-अपर्याप्तक तक (अपर्याप्तरूप में अवस्थिति) के विषय में (समझना चाहिए।)
१२७९. सइंदियपजत्तए णं भंते ! सइंदियपजत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसतपुहत्तं सातिरोगं। [१२७९ प्र.] भगवन् ! सेन्द्रिय-पर्याप्तक, सेन्द्रिय-पर्याप्तरूप में कितने काल काल तक रहता है?
[१२७९ उ.] गौतम ! (वह) जघन्यः अन्तर्मुहूर्त तक तथा उत्कृष्टतः शतपृथक्त्वसागरोपम से कुछ अधिक तक (सेन्द्रिय-पर्याप्त जीव सेन्द्रिय-पर्याप्त बना रहता है।)
१२८०. एगिदियपज्जत्तए णं भंते ! ० पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं संखेजाइं वाससहस्साई ।