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________________ सत्तरहवाँ लेश्यापद : छठा उद्देशक] [३५३ वे लेश्याद्रव्य किसी जीव के कोई और किसी के कोई अन्य होते हैं। इस कारण जनक या जननी या दोनों भले ही कृष्णलेश्या में परिणत हों, जन्य जीव की लेश्या उससे भिन्न भी हो सकती है। इसी प्रकार अन्य लेश्याओं के विषय में भी समझ लेना चाहिए। आलापक - इस कारण कृष्णलेश्या वाला मनुष्य अपनी लेश्या वाले गर्भ के अतिरिक्त अन्य पांचों लेश्याओं वाले गर्भ को उत्पन्न करता है। इस दृष्टि से कृष्णलेश्या से षट्लेश्यात्मक गर्भ के उत्पन्न होने से एतत्सम्बन्धी छह आलापक हुए तथा शेष नीलादि लेश्याओं के भी ६-६ आलापक होने से ३६ विकल्प हो गए। इसी तरह कृष्णादि छहों लेश्या वाली स्त्रियों में से प्रत्येक लेश्या वाली स्त्री से प्रत्येक लेश्या वाले गर्भ की उत्पत्ति सम्बन्धी.३६ आलापक होते हैं। कृष्णादिलेश्या वाले पुरुष द्वारा कृष्णादिलेश्या वाली स्त्री से कृष्णादिलेश्या वाले गर्भ की उत्पत्ति सम्बन्धी भी ३६ आलापक हैं। फिर अकर्मभूमिक, अन्तरद्वीपज कृष्णादिलेश्या वाले पुरुष द्वारा तथा अकर्मभूमिक एवं अन्तरद्वीपज कृष्णादिलेश्या वाली स्त्री से इसी प्रकार की लेश्या वाले गर्भ को उत्पत्ति सम्बन्धी क्रमशः १६-१६ आलापक होते हैं । ॥सत्तरहवाँ लेश्यापद : छठा उद्देशक समाप्त ॥ ॥ प्रज्ञापनासूत्र : सत्तरहवाँ लेश्यापद सम्पूर्ण ॥ १. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक ३७३ २. पण्णवणासुत्तं (मूलपाठ) भा. १, पृ. ३०२-३०३
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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