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________________ १६ ] [ प्रज्ञापनासूत्र [७८४ उ.] गौतम! चतुष्पदेशिक स्कन्ध १. कथंचित् चरम ०००० है, २. अचरम नहीं है, ३. कथंचित् अवक्तव्य 88] है। ४. (वह) न तो अनेक चरमरूप है, ५. न अनेक अचरमरूप है, ६. न ही अनेक अवक्तव्यरूप है,७. न (वह) चरम और अचरम है,८. न एक चरम और अनेक अचरमरूप है, (किन्तु) ९. कथञ्चित् अनेक चरमरूप और अचरम ००] है, १०. कथंचित् अनेक चरमरूप और अनेक अचरमरूप नगन है, ११. कथंचित् एक चरम और एक अवक्तव्य है ००० (और) १२. कथंचित् एक चरम और अनेक अवक्तव्यरूप ० है, १३. (वह) न.तो अनेक चरमरूप और एक अवक्तव्य है, १४. न अनेक चरमरूप और अनेक अवक्तव्यरूप है, १५. न एक अचरम और एक अवक्तव्य है, १६. न एक अचरम और अनेक अवक्तव्यरूप है, १७. न अनेक अचरमरूप और एक अवक्तव्य है, १८. न अनेक अचरमरूप और न अनेक अवक्तव्यरूप है (और) १९. न (ही वह) एक चरम, एक अचरम और एक अवक्तव्य है, २०. न एक चरम, एक अचरम और अनेक अवक्तव्यरूप है, २१. न एक चरम, अनेक अचरमरूप और एक अवक्तव्य है, २२. न एक चरम, अनेक अचरमरूप और अनेक अवक्तव्यरूप है, (किन्तु) २३. कथंचित् अनेक चरमरूप, एक अचरम और एक अवक्तव्य [वन है। शेष (तीन) भंगों का निषेध करना चाहिए। ७८५. पंचसिए णं भंते! खंधे पुच्छा। गोयमा! पंचपएसिए णं खंधे सिय चरिमे १ नो अचरिमे २ सिय अवत्तव्बए 8 ० ४] ३ णो चरिमाइं ४ नो अचरिमाइं ५ नो अवत्तव्वयाइं ६, सिय चरिमे य अच चरिमे य अचरिमाइं च ८ सिय चरिमाइं अचरिमे य न्व00 ९ सिय चरिमाइं च अचरिमाइं च गान्व१०, सिय चरिमे य अवत्तव्वए य ०००°११, सिय चरिमे य अवत्तव्वयाइं च हा १२ सिय चरिमाइं च अवत्तव्वए 0] १३ नो चरिमाइं च अवत्तव्वयाइं च १४, णो अचरिमे य olol ०० अवत्तव्वए य १५ नो अचरिमे य अवत्तव्वयाइं च १६ नो अचरिमाइं च अवत्तव्वए य १७ नो अचरिमाइं च अवत्तव्वयाइंच १८, नो चरिमे य अचरिमे य अवत्तव्वए य १९ नो चरिमे य अचरिमे य अवत्तव्वयाई च २० नो चरिमे य अचरिमाइं च अवत्तव्वए य २१ नो चरिमे य अचरिमाइं च अवत्तव्वयाइं च २२ सिय चरिमाइंच अचरिमे य अवत्तव्वए य गन २३ सिय चरिमाइंच अचरिमे य अवत्तव्वयाइंच गन २४ सिय चरिमाइं च अचरिमाइं च अवत्तव्वए य P २५ नो चरिमाइंच
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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