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[ प्रज्ञापनासूत्र
[७८४ उ.] गौतम! चतुष्पदेशिक स्कन्ध १. कथंचित् चरम ०००० है, २. अचरम नहीं है, ३. कथंचित् अवक्तव्य 88] है। ४. (वह) न तो अनेक चरमरूप है, ५. न अनेक अचरमरूप है, ६. न ही अनेक अवक्तव्यरूप है,७. न (वह) चरम और अचरम है,८. न एक चरम और अनेक अचरमरूप है, (किन्तु) ९. कथञ्चित् अनेक चरमरूप और अचरम ००] है, १०. कथंचित् अनेक चरमरूप और अनेक अचरमरूप नगन है, ११. कथंचित् एक चरम और एक अवक्तव्य है ००० (और) १२. कथंचित् एक चरम
और अनेक अवक्तव्यरूप ० है, १३. (वह) न.तो अनेक चरमरूप और एक अवक्तव्य है, १४. न अनेक चरमरूप और अनेक अवक्तव्यरूप है, १५. न एक अचरम और एक अवक्तव्य है, १६. न एक अचरम और अनेक अवक्तव्यरूप है, १७. न अनेक अचरमरूप और एक अवक्तव्य है, १८. न अनेक अचरमरूप और न अनेक अवक्तव्यरूप है (और) १९. न (ही वह) एक चरम, एक अचरम और एक अवक्तव्य है, २०. न एक चरम, एक अचरम और अनेक अवक्तव्यरूप है, २१. न एक चरम, अनेक अचरमरूप और एक अवक्तव्य है, २२. न एक चरम, अनेक अचरमरूप और अनेक अवक्तव्यरूप है, (किन्तु) २३. कथंचित् अनेक चरमरूप, एक अचरम और एक अवक्तव्य [वन है। शेष (तीन) भंगों का निषेध करना चाहिए।
७८५. पंचसिए णं भंते! खंधे पुच्छा।
गोयमा! पंचपएसिए णं खंधे सिय चरिमे १ नो अचरिमे २ सिय अवत्तव्बए 8 ० ४] ३ णो चरिमाइं ४ नो अचरिमाइं ५ नो अवत्तव्वयाइं ६, सिय चरिमे य अच चरिमे य अचरिमाइं च ८ सिय चरिमाइं अचरिमे य न्व00 ९ सिय चरिमाइं च अचरिमाइं च
गान्व१०, सिय चरिमे य अवत्तव्वए य ०००°११, सिय चरिमे य अवत्तव्वयाइं च हा १२ सिय चरिमाइं च अवत्तव्वए 0] १३ नो चरिमाइं च अवत्तव्वयाइं च १४, णो अचरिमे य
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अवत्तव्वए य १५ नो अचरिमे य अवत्तव्वयाइं च १६ नो अचरिमाइं च अवत्तव्वए य १७ नो अचरिमाइं च अवत्तव्वयाइंच १८, नो चरिमे य अचरिमे य अवत्तव्वए य १९ नो चरिमे य अचरिमे य अवत्तव्वयाई च २० नो चरिमे य अचरिमाइं च अवत्तव्वए य २१ नो चरिमे य अचरिमाइं च अवत्तव्वयाइं च २२ सिय चरिमाइंच अचरिमे य अवत्तव्वए य गन २३ सिय चरिमाइंच अचरिमे य अवत्तव्वयाइंच गन २४ सिय चरिमाइं च अचरिमाइं च अवत्तव्वए य P २५ नो चरिमाइंच