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________________ सत्तरसमं लेस्सापयं :छट्टो उद्देसओ सत्तरहवाँ लेश्यापद : छठा उद्देशक लेश्या के छह प्रकार १२५६. कति णं भंते ! लेस्साओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! छल्लेसाओ पण्णत्ताओ । तं जहा - कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा । [१२५६ प्र.] भगवन् ! लेश्याएँ कितनी हैं ? ६.१२५६ उ.] गौतम ! छह लेश्याएँ कही गई हैं - कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या । मनुष्यों में लेश्याओं की प्ररूपणा १२५७. [१] मणूसाणं भंते ! कति लेस्साओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! छल्लेसाओ पण्णत्ताओ । तं जहा - कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा । [१२५७-१ प्र.] भगवन् ! मनुष्यों में कितनी लेश्याएँ होती हैं ? [१२५७-१ उ.] गौतम ! छह लेश्याएँ होती हैं, वे इस प्रकार- कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या । [२] मणूसीणं पुच्छा। गोयमा ! छल्लेसाी पण्णत्ताओ । तं जहा - कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा। . [१२५७-२ प्र.] भगवन् ! मनुष्यस्त्रियों में कितनी लेश्याएँ होती हैं ? [१२५७-२ उ.] गौतम ! (उनमें भी) छह लेश्याएँ हैं - कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या । [३] कम्मभूमयमणूसाणं भंते ! कति लेस्साओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! छ। तं जहा - कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा । [१२५७-३ प्र.] भगवन् ! कर्मभूमिक मनुष्यों में कितनी लेश्याएँ हैं ? [१२५७-३ उ.] गौतम ! (उनमें) छह (लेश्याएँ होती हैं।) वे इस प्रकार - कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या ।
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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