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________________ सत्तरहवाँ लेश्यापद : चतुर्थ उद्देशक [३४१ ___ [१२४७ उ.] गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा से, सबसे थोड़े जघन्य कापोतलेश्यास्थान हैं, उनसे नीललेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं, उनसे कृष्णलेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं, उनसे तेजोलेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं, उनसे पद्मलेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं, उनसे शुक्ललेश्या के जघन्यस्थान द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं। प्रदेशों की अपेक्षा से - सबसे थोड़े कापोतलेश्या के जघन्य स्थान हैं, उनसे नीललेश्या के जघन्य स्थान प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं, उनसे कृष्णलेश्या के जघन्य स्थान प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) तेजोलेश्या के जघन्य स्थान प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं, उनसे पद्मलेश्या के जघन्य स्थान प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणें हैं, उनसे शुक्ललेश्या के जघन्य स्थान प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं। द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से - सबसे कम कापोतलेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा से हैं, उनसे नीललेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं, उनसे जघन्य कृष्णलेश्यास्थान, तेजोलेश्यास्थान, पद्मलेश्या तथा इसी प्रकार शुक्ललेश्यास्थान द्रव्य की अपेक्षा से (क्रमश:) असंख्यातगुणे हैं। द्रव्य की अपेक्षा से शुक्ललेश्या के जघन्य स्थानों से, कापोतश्लेश्या के जघन्य स्थान प्रदेशों की अपेक्षा से अनन्तगुणे हैं, उनसे नीललेश्या के जघन्य स्थान प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं, इसी प्रकार कृष्णलेश्या, तेजोलेश्या, पद्मलेश्या एवं शुक्ललेश्या के जघन्य स्थान प्रदेशों की अपेक्षा से उत्तरोत्तर असंख्यातगुणे हैं। १२४८. एतेसि णं भंते ! कण्हलेस्सट्ठाणाणं जाव सुक्कलेस्सट्ठाणाण य उक्कोसगाणं दव्वट्ठयाए पएसट्ठयाए दव्वट्ठपएसट्टयाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा ४? गोयमा ! सव्वत्थोवा उक्कोसगा काउलेस्सटाणा दव्वट्ठयाए, उक्कोसगाणीललेस्सट्ठाणा दव्वट्ठयाए असंखेजगुणा, एवं जहेव जहण्णगा तहेव उक्कोसगा वि, णवरं उक्कोस त्ति अभिलावो। . [१२४८ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्या के उत्कृष्ट स्थानों (से लेकर) यावत् शुक्ललेश्या के उत्कृष्ट स्थानों में द्रव्य की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से तथा द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से कौन, किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [१२४८ उ.] गौतम ! सबसे थोड़े कापोतलेश्या के उत्कृष्ट स्थान द्रव्य की अपेक्षा से हैं। (उनसे) नीललेश्या के उत्कृष्ट स्थान द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं । इसी प्रकार जघन्यस्थानों के अल्पबहुत्व की तरह उत्कृष्ट स्थानों का भी अल्पबहुत समझ लेना चाहिए। विशेषता यह है कि 'जघन्य' शब्द के स्थान में (यहाँ) 'उत्कृष्ट' शब्द कहना चाहिए । १२४९. एतेसिणं भंते ! कण्हलेस्सट्ठाणाणं जावसुक्कलेस्सट्ठाणाण य जहण्णुक्कोसगाणं दव्वट्ठयाए पएसट्ठयाए दव्वट्ठपएसट्ठयाए कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा ४ ?
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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