SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 356
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सत्तरहवाँ लेश्यापद : चतुर्थ उद्देशक] [३३५ [१२३७ प्र.] भगवन् ! पद्मलेश्या का आस्वाद कैसा है ? [१२३७ उ.] गौतम ! जैसे कोई चन्द्रप्रभा नामक मदिरा, मणिशलाका मद्य, श्रेष्ठ सीधु नामक मद्य हो, उत्तम वारूणी (मदिरा) हो, (धातकी के) पत्तों से बनाया हुआ आसव हो, पुष्पों का आसव हो, फलों का आसव हो, चोय नाम के सुगन्धित द्रव्य से बना आसव हो, अथवा सामान्य आसव हो, मधु (मद्य) हो, मैरेयक या कापिशायन नामक मद्य हो, खजूर का सार हो, द्राक्षा (का) सार हो, सुपक्व इक्षुरस हो, अथवा (शास्त्रोक्त) अष्टविध पिष्टों द्वारा तैयार की हुए वस्तु हो, या जामुन के फल की तरह काली (स्वादिष्ट वस्तु) हो, या उत्तम प्रसन्ना नाम की मदिरा हो, (जो) अत्यन्त स्वादिष्ट हो, प्रचुर रस से युक्त हो, रमणीय हो, (अतएव आस्वादयुक्त होने से) झटपट ओठों से लगा ली जाए (अर्थात् जो मुखमाधुर्यकारिणी हो तथा) जो पीने के पश्चात् (इलायची, लौंग आदि द्रव्यों के मिश्रण के कारण) कुछ तीखी-सी हो, आंखों को ताम्रवर्ण की बना दे तथा उत्कृष्ट मादक (मदप्रापक) हो, जो प्रशस्त वर्ण, गन्ध और स्पर्श से युक्त हो, जो आस्वादन करने योग्य हो, विशेष रूप से आस्वादन करने योग्य हो, जो प्रीणनीय (तृप्तिकारक) हो, बृहणीय- वृद्धिकारक हो, उद्दीपन करने वाली, दर्पजनक, मदजनक तथा सभी इन्द्रियों और शरीर (गात्र) को आह्रादजनक हो, इनके रस के समान पद्मलेश्या का रस (आस्वाद) होता है ? [प्र.] भगवन् ! क्या पद्मलेश्या के रस का स्वरूप ऐसा ही होता है ? [उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। पद्मलेश्या तो स्वाद (रस) में इससे भी इष्टतर यावत् अत्यधिक मनाम कही है। १२३८. सुक्कलेस्सा णं भंते ! केरिसिया अस्साएणं पण्णत्ता ? गोयमा ! से जहाणामए गुले इ वा खंडे इ वा सक्करा इ वा मच्छंडिया इ वा पप्पडमोदए इ वा भिसकंदे इ वा पुप्फुत्तरा इ वा पउमुत्तरा इ वा आयंसिया इ वा सिद्धत्थिया इ वा आगासफालिओवमा इ वा अणोवमाइ वा ? भवेतारूवा? गोयमा ! णो इणढे समढे, सुक्कलेस्सा णं एत्तो इट्टतरिया चेव कंततरिया चेव पियतरिया चेव मणामतरिया चेव अस्साएणं पण्णत्ता । [१२३८ प्र.] भगवन् ! शुक्ललेश्या स्वाद में कैसी है ? [१२३८ उ.] गौतम ! जैसे कोई गुड़ हो, खांड हो, या शक्कर हो, या मिश्री हो, (अथवा मत्स्यण्डी) (खांड से बनी शक्कर) हो, पर्पटमोदक (एक प्रकार का मोदक अथवा मिश्री का पापड़ और लड्डू) हो, भिस (विस) कन्द हो, पुष्पोत्तर नामक मिष्ठान्न हो, पद्मोत्तरा नाम की मिठाई हो, आदंशिका (सन्देश ?) नामक मिठाई हो, या सिद्धार्थिका नाम की मिठाई हो, आकाशस्फटिकोपमा नामक मिठाई हो, अथवा अनुपमा नामक मिष्ठान्न हो; (इनके स्वाद के समान शुक्ललेश्या का स्वाद (रस) है।)
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy