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________________ ३३२] प्रज्ञापनासूत्र (अत्यन्त अप्रिय) विशेषण प्रयोग किया गया है। इसी कारण कृष्णलेश्या अमनोज्ञतर (अत्यन्त अमनोज्ञ) होती है। वास्तव में उसके स्वरूप का सम्यक् परिज्ञान होने पर मन उसे किंचित् भी उपादेय नहीं मानता। कड़वी औषध जैसी कोई वस्तु अमनोज्ञतर होने पर भी मध्यमस्वरूप होती है किन्तु कृष्णलेश्या सर्वथा अमनोज्ञ है; यह अभिव्यक्त करने के लिए उसके लिए 'अमनामतर' (सर्वथा अवांछनीय) विशेषण का प्रयोग किया गया है। इसी प्रकार नीललेश्या और कापोतलेश्या के लिए शास्त्रकार ने इन्हीं पांच विशेषणों का प्रयोग किया है। जबकि अन्त की तीन लेश्याओं के लिए इनसे ठीक विपरीत 'इष्टतर' आदि पांच विशेषणों का प्रयोग किया गया है। 'साहिज्जंति' पद का अर्थ - कही जाती है, प्ररूपित की जाती है। तृतीय रसाधिकार १२३३. कण्हलेस्सा णं भंते ! केरिसिया आसाएणं पण्णत्ता ? गोमा ! से हाणामए णिंबे इ वा लिंबसारे इ वा णिंबछल्ली इ वा णिंबफाणिए इ वा कुड इ वा कुडगफले इ वा कुडगछल्ली इ वा कुडगफाणिए इ वा कडुगतुंबी इ वा कडुगतुम्बीफले इवा खारतउसी इ वा खारतउसीफले इ वा देवदाली इ वा देवदालिपुप्फे इ वा मियवालुंकी इ वा मियवालुंकीफले इ वा घोसाडिए इ वा घोसाडइफले इ वा कण्हकंदए इ वा वज्जकंदए इ वा । भवेतरूवा ? गोमा ! णो ण समट्ठे, कण्हलेस्सा णं एत्तो अणिट्ठतरिया चेव जाव अमणामतरिया चेव अस्साएणं पण्णत्ता। [१२३३ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्या आस्वाद (रस) से कैसी कही है ? [१२३३.उ.] गौतम ! जैसे कोई नीम हो, नीम का सार हो, नीम की छाल हो, नीम का क्वाथ (काढ़ा) हो, अथवा कुटज हो, या कुटज का फल हो, अथवा कुटज की छाल हो; या कुटज का क्वाथ (काढ़ा) हो, अथवा कड़वी तुम्बी हो, या कटुक तुम्बीफल (कड़वा तुम्बा) हो, कड़वी ककड़ी (त्रपुषी) हो, या कड़वी ककड़ी का फल हो अथवा देवदाली (रोहिणी) हो या देवदाली (रोहिणी) का पुष्प हो, या मृगवालुंकी हो अथवा मृगवालुंकी का फल हो, या कड़वी घोषातिकी हो, अथवा कड़वी घोषातिकी का फल हो, या कृष्णकन्द हो, अथवा वज्रकन्द हो; (इन वनस्पतियों के कटु रस के समान कृष्णलेश्या का रस (स्वाद) कहा गया है ।) १. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक ३६२ २. वही, मलय. वृत्ति, पत्रांक ३६२
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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