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________________ ३०६] [प्रज्ञापनासूत्र काउलेस्सहिंतो तेउलेस्सा महिड्डिया, तेउलेस्सेहितो पम्हलेस्सा महिड्डिया, पम्हलेस्सेहितो सुक्कलेस्सा महिड्डिया, सव्वप्पिड्डिया जीवा किण्हलेस्सा, सव्वमहिड्डिया जीवा सुक्कलेस्सा । [११९१ प्र.] भगवन् ! इन कृष्णलेश्या वाले, यावत् शुक्ललेश्या वाले जीवों में से कौन, किनसे ल्प ऋद्धिवाले अथवा महती ऋद्धि वाले होते हैं ? __ [११९१ उ.] गौतम ! कृष्णलेश्या वालों से नीललेश्या वाले महर्द्धिक हैं, नीललेश्या वालों से कापोतलेश्या वाले महर्द्धिक हैं, कापोतलेश्या वालों से तेजोलेश्या वाले महर्द्धिक हैं, तेजोलेश्या वालों से पद्मलेश्या वाले महर्द्धिक हैं और पद्मलेश्या वालों से शुक्ललेश्या वाले महर्द्धिक हैं । कृष्णलेश्या वाले जीव सबसे अल्प ऋद्धि वाले हैं और शुक्ललेश्या वाले जीव सबसे महती ऋद्धि वाले हैं । ११९२. एतेसिणं भंते !णेरइयाणं कण्हलेस्साणं णीललेस्साणं काउलेस्साणं य कतरे कतरेहितो अप्पिड्डिया वा महिड्डिया वा ? गोयमा ! कण्हलेस्सेहितो णीललेस्सा महिड्डिया, णीललेस्सेहितो काउलेस्सा महिड्डिया, सव्वप्पिड्डिया णेरइया कण्हलेस्सा, सव्वमहिड्डिया णेरइया काउलेस्सा । [११९२ प्र.] भगवन् ! इन कृष्णलेश्यी, नीललेशी और कापोतलेश्यी नारकों में कौन, कितनी अल्प ऋद्धि वाले अथवा महती ऋद्धि वाले हैं ? [११९२ उ.] गौतम ! कृष्णलेश्यी नारकों से नीललेश्यी नारक महर्द्धिक है, नीललेश्यी नारकों से कापोतलेश्यी नारक महर्द्धिक हैं। कृष्णलेश्या वाले नारक सबसे अल्प ऋद्धि वाले हैं और कापोतलेश्या वाले नारक सबसे महती ऋद्धि वाले हैं । ११९३. एतेसिणं भंते ! तिरिक्खजोणियाणं कण्हलेस्साणंजावसुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पिड्डिया वा महिड्डिया वा? गोयमा ! जहा जीवा। [११९३ प्र.] भगवन् ! इस कृष्णलेश्या वाले वावत् शुक्ललेश्या वाले तिर्यञ्चयोनिकों में से कौन, किनसे अल्पर्द्धिक अथवा महर्द्धिक हैं ? _ [११९३ उ.] गौतम ! जैसे समुच्चय जीवों की (कृष्णादिलेश्याओं की अपेक्षा से) अल्पर्द्धिकतामहर्द्धिकता कही है, उसी प्रकार तिर्यञ्चयोनिकों की (कृष्णादिलेश्याओं की अपेक्षा से अल्पर्द्धिकता और महर्द्धिकता) कहनी चाहिए। ११९४. एतेसि णं भंते ! एगिदियतिरिक्खजोणियाणं कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पिड्डिया वा महिड्डिया वा ? गोयमा ! कण्हलेस्सेहितो, एगिंदियतिरिक्खजोणिएहितो णीललेस्सा महिड्डिया णीललेस्सेहितो
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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