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________________ ३०४] [प्रज्ञापनासूत्र कृष्णादिलेश्याविशिष्ट पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों का दशविध अल्पबहुत्व - यों तो समुच्चय तिर्यञ्चों में अल्पबहुत्व के समान ही है, किन्तु जैसे समुच्चय तिर्यञ्च कापोतलेश्या वाले अनन्तगुणे बताए हैं, वैसे कापोतलेश्या वाले पंचेन्द्रियतिर्यञ्च अनन्त नहीं हो सकते, किन्तु वे असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि सभी पंचेन्द्रियतिर्यञ्च मिलकर भी असंख्यात ही हैं । सामान्य पंचेन्द्रियतिर्यञ्च के इस सूत्र के साथ ही निम्नोक्त विशिष्ट पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों के आठ और एक समुच्चय तिर्यंचों का, यों ९ सूत्र और हैं - यथा - (२) सम्मूर्च्छिम-पंचेन्द्रियतिर्यच का, (३) गर्भजपंचेन्द्रियतिर्यञ्च का, (४) गर्भज-पंचेन्द्रियतिर्यच स्त्रियों का, (५) गर्भज-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों और सम्मूर्च्छिमपंचेन्द्रियेतिर्यचों का सम्मिलित, (६) सम्मूर्च्छिम-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों और तिर्यचस्त्रियों का, (७) गर्भजपंचेन्द्रियतिर्यंचों और तिर्यञ्चस्त्रियों का, (८) सम्मूर्छिम एवं गर्भज-पंचेन्द्रियतिर्यचों और गर्भज-तिर्यञ्चस्त्रियों का, (९) पंचेन्द्रियतिर्यंचों और तिर्यचस्त्रियों का और (१०) तिर्यञ्चों और तिर्यचस्त्रियों का सम्मिलित अल्पबहुत्व। ___एक बात विशेषतः ध्यान देने योग्य है कि सभी लेश्याओं में स्त्रियों की संख्या अधिक पाई जाती है। यों भी सभी तिर्यञ्च पुरूषों की अपेक्षा तिर्यञ्च स्त्रियों की संख्या तिगुनी और तीन अधिक होती है, ऐसा सैद्धान्तिकों का मन्तव्य है। यही कारण है कि सप्तम अल्पबहुत्व में तिर्यञ्च स्त्रियाँ अधिक बताई गई हैं, तत्पश्चात् दसवें अल्पबहुत्व में भी तिर्यञ्चस्त्रियों की संख्या अधिक प्रतिपादित हैं । मनुष्यों के अल्पबहुत्व में पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों के अल्पबहुत्व से विशेषता - यों तो मनुष्यों के अल्पबहुत्व की प्रायः सभी वक्तव्यता पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों के अल्पबहुत्व के समान ही है, किन्तु मनुष्यों में पिछला अर्थात् दसवां अल्पबहुत्व नहीं होता, क्योंकि मनुष्य में अनन्तसंख्या सम्भव नहीं है। इस कारण 'कापोतलेश्या वाले अनन्तगुणे हैं यह भाग मनुष्यों में सम्भव नहीं हैं।' ___ चारों निकायों के देवों का अल्पबहुत्व - (१) समुच्चय देवों का अल्पबहुत्व - सबसे थोड़े शुक्ललेश्या वाले देव इसलिए हैं कि शुक्ललेश्या लान्तक आदि ऊपर के देवलोकों में ही पाई जाती है। १. ओहिय पणिंदि १ समुच्छिया २ य गब्भे ३ तिरिक्ख इत्थीओ ४ । संमुच्छिमगब्भतिरिया ५, मुच्छतिरिक्खी य ६, गब्भंमि ७ ॥१॥ संमुच्छिमगब्भइत्थी ८, पणिदितिरिगित्थीया ९ य ओहित्थी १० । दस अप्पब हुगभेया तिरियाणं होंति नायव्वा ॥२॥ - प्रज्ञापना. म. वृत्ति, पत्रांक ३४९ में उद्धृत २. 'तिगुणातिरूवअहिया तिरियाणं इत्थिया मुणेयव्वा ।' ३. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक ३४७ ४. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक ३४९
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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