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________________ सत्तरहवाँ लेश्यापद : द्वितीय उद्देशक] [२९५ तिर्यञ्चपंचन्द्रिय) विशेषाधिक हैं, उनसे कृष्णलेश्यायुक्त विशेषाधिक हैं, उनसे कापोतलेश्या वाले सम्मूछिमपंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक असंख्यातगुणे हैं, उनसे नीललेश्या वाले विशेषाधिक हैं और उनसे भी कृष्णलेश्या वाले सम्मूछिम-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक विशेषाधिक हैं। [६] एतेसि णं भंते ! सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं तिरिक्खजोणिणीण य कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा ४ ? गोयमा ! जहेव पंचमं (सु. ११८० [५]) तहा इमं पि छटुं भाणियव्वं । [११८०-६ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्या वाले से लेकर शुक्ललेश्या वाले सम्मूछिम पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों और तिर्यञ्चयोनिक स्त्रियों में से कौन, किनसे अलप, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक हैं ? [११८०-६ उ.] गौतम ! जैसे (स. ११८०-५ में) पंचम (कृष्णादिलेश्यायुक्त तिर्यञ्चयोनिक सम्बन्धी) अल्पबहुत्व कहा है, वैसे ही यह छठा (सम्मूछिम-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों और तिर्यञ्चयोनिक स्त्रियों का कृष्णलेश्यादिविषयक) अल्पबहुत्व कहना चाहिए । [७] एतेसि णं भंते ! गब्भवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं तिरिक्खजोणिणीण य कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा ४ ? गोयमा ! सव्वत्थोवा गब्भवक्वंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणिया सुक्कलेस्सा सुक्कलेस्साओ तिरिक्खजोणिणीओ संखेजगुणाओ, पम्हलेस्सा गब्भवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणिया संखेजगुणा, पम्हलेस्साओ तिरिक्खजोणिणीओ, संखेजगुणाओ, तेउलेस्सा० संखेजगुणा, तेउलेस्साओ० संखेजगुणाओ, काउलेस्सा० संखेजगुणा, णीललेस्सा० विसेसाहिया, कण्हलेस्सा० विसेसाहया, काउलेस्साओ० संखेजगुणाओ, णीललेस्साओ० विसेसाहियाओ, कण्हलेस्साओ० विसेसाहियाओ। [११८०-७ प्र.] भगवन् ! इन कृष्णालेश्या वालों से लेकर शुक्ललेश्या वाले गर्भज पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों और तिर्यञ्चस्त्रियों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक हैं ? । [११८०-७ उ.] गौतम ! सबसे कम शुक्ललेश्या वाले गर्भज-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक हैं, उनसे संख्यातगुणी शुक्ललेश्या वाली गर्भज-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चस्त्रियाँ हैं, उनसे पद्मलेश्या वाले गर्भज पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक संख्यातगुणे हैं, उनसे पद्मलेश्या वाली गर्भज-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चस्त्रियाँ संख्यातगुणी हैं, उनसे तेजोलेश्या वाले० संख्यातगुणे हैं, उनसे तेजोलेश्या वाली तिर्यञ्चस्त्रियां संख्यातगुणी हैं, उनसे कापोतलेश्या वाले गर्भजपंचेन्द्रियतिर्यञ्च संख्यातगुणे हैं, उनसे नीललेश्या वाले (गर्भज-पंचेन्द्रियतिर्यञ्च) संक्ष्यातगुणे हैं, उनसे नीललेश्या वाली (गर्भज-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चस्त्रियां) विशेषाधिक हैं, उनसे कृणलेश्या वाली (गर्भज-पंचेन्द्रियस्त्रियां) विशेषाधिक हैं । [८] एतेसि णं भंते ! सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं गब्भवतंतियपंचेंदियतिरिक्ख जोणियाणं तिरिक्खजोणिणीण य कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा ४?
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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