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सत्तरसमं लेस्सापयं : पढमो उद्देसओ
___सत्तरहवाँ लेश्यापद : प्रथम उद्देशक प्रथम उद्देशक में वर्णित सप्त द्वार __ ११२३. आहार सम सरीरा उस्सासे १ कम्म २ वण्ण ३ लेस्सासु ४ ।
समवेदण ५ समकिरिया ६ समाउया ७ चेव बोद्धव्वा ॥२०९॥ . [११२३ प्रथम-उद्देशक अधिकारगाथार्थ-] १. समाहार, सम-शरीर और (सम) उच्छ्वास, २. कर्म, ३. समक्रिया तथा ७. समायुष्क, (इस प्रकार सात द्वार प्रथम उद्देशक में) जानने चाहिए ॥ २०९ ॥ . विवेचन- प्रथम उद्देशक में लेश्या से सम्बन्धित सप्तद्वार - प्रस्तुत सूत्र में लेश्यासम्बन्धी समआहार, शरीर-उच्छ्वासादि सातों द्वारों का निरूपण किया गया है।
आहारादि प्रत्येक पद के साथ 'सम' शब्द प्रयोग - प्रस्तुत गाथा के पूर्वार्द्ध में 'सम' शब्द का प्रयोग एक बार किया गया है, उसका सम्बनध प्रत्येक पद के साथ जोड़ लेना चाहिए। जैसे- समाहार समशरीर, समउच्छ्वास, समकर्म, समलेश्या, समवेदना, समक्रिया और समायुष्क ।
लेश्या की व्याख्या - जिसके द्वारा आत्मा कर्मों के साथ श्लेष को प्राप्त होता है, वह लेश्या है। लेश्या की शास्त्रीय परिभाषा है - कृष्णादि द्रव्यों के सान्निध्य से होने वाला आत्मा का परिणाम लेश्या है। कहा भी है - जैसे स्फटिक मणि के पास जिस वर्ण की वस्तु रख दी जाती है, स्फटिक मणि उसी वर्ण वाली प्रतीत होती है, उसी प्रकार कृष्णादि द्रव्यों के संसर्ग से आत्मा में भी उसी तरह का परिणाम होता है। वही परिणाम लेश्या कहलाता है।
लेश्या का निमित्तकारण : योग या कषाय ?- कृष्णादि द्रव्य क्या है ? इसका उत्तर यह है कि
पाठान्तर - किन्हीं प्रतियों में प्रस्तुत सात द्वारों के बदले 'आहार' के साथ शरीर और उच्छ्वास को सम्मिलित न मान कर पृथक्
पृथक् माना है, अतएव नौ द्वार गिनाए हैं । - सं. २. (क) प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक ३२९ (ख) कृष्णादिद्रव्यसाचिव्यात् परिणामो य आत्मनः ।
स्फटिकस्येव तत्रायं, लेश्याशब्दः प्रवर्तते ॥