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सोलहवाँ प्रयोगपद]
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षट्प्रदेशी, सप्तप्रदेशी, अष्टप्रदेशी, नवप्रदेशी, दशप्रदेशी, संख्यातप्रदेशी, असंख्यातप्रदेशी) अनन्तप्रदेशी स्कन्धों की एक दूसरे को स्पर्श करते हुए जो गति होती है, वह स्पृशद्गति है। यह हुआ स्पृशद्गति का वर्णन ॥ १ ॥ ११०७. से किं तं अफुसमाणगती ?
असमाणगती जण्णं एतेसिं चेव अफुसित्ता णं गती पवत्तइ । से त्तं अफुसमाणगती २ । [११०७ प्र.] अस्पृशद्गति किसे कहते हैं ?
[११०७ उ.] उन्हीं पूर्वोक्त परमाणु पुद्गलों से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्धों की परस्पर स्पर्श किये बिना ही जो गति होती है; वह अस्पृशद्गति है । यह हुआ अस्पृशद्गति का स्वरूप ॥ २ ॥
१९०८. से किं तं उवसंपज्जमाणगती ?
उवसंपज्जमाणगती जण्णं रायं वा जुवरायं वा ईसरं वा तलवरं वा माडंबियं वा कोडुंबियं वा इब्धं वा सिद्धिं वा सेणावई वा सत्थवाहं वा उवसंपज्जित्ता णं गच्छति । से त्तं उवसंपज्जमाणगगी३ । [११०८ प्र.] वह उपसम्पद्यमानगति क्या है ?
[११०८ उ.] उपसम्पद्यमानगति वह है, जिसमें व्यक्ति राजा, युवराज, ईश्वर (ऐश्वर्यशाली), तलवर (किसी नृप द्वारा नियुक्त पट्टधर शासक ), माडम्बिक (मण्डलाधिपति), इभ्य ( धनाढ्य ), सेठ, सेनापति या सार्थवाह को आश्रय करके (उनके सहयोग या सहारे से) गमन करता हो। यह हुआ उपसम्पद्यमानगति का स्वरूप ॥ ३ ॥
११०९. से किं तं अणुवसंपज्जमाणगती ?
अणुवसंपज्जमाणगती जण्णं एतेसिं चेव अण्णमण्णं अणुवसंपज्जित्ता णं गच्छति । से तं अणुवसंपज्जमाणगती ४ ।
[११०९ प्र.] वह अनुपसम्पद्यमानगति क्या है ?
[११०९ उ.] इन्हीं पूर्वोक्त (राज आदि) का परस्पर आश्रय न लेकर जो गति होती है, वह अनुपसम्पद्यमान गति है। यह हुआ अनुपसम्पद्यमान गति का स्वरूप ॥४॥
१११०. से किं तं पोग्गलगती ?
पोग्गलगती जणं परमाणुपोग्गलाणं जाव अनंतपएसियाणं खंधाणं गती पवत्तति । से तं पोग्गलगती ५ ।
[१११० प्र.] पुद्गलगति क्या है ?
[१११० उ.] परमाणु पुद्गलों की यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्धों की गति पुद्गलगति है ।