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________________ सोलहवाँ प्रयोगपद] [२५७ षट्प्रदेशी, सप्तप्रदेशी, अष्टप्रदेशी, नवप्रदेशी, दशप्रदेशी, संख्यातप्रदेशी, असंख्यातप्रदेशी) अनन्तप्रदेशी स्कन्धों की एक दूसरे को स्पर्श करते हुए जो गति होती है, वह स्पृशद्गति है। यह हुआ स्पृशद्गति का वर्णन ॥ १ ॥ ११०७. से किं तं अफुसमाणगती ? असमाणगती जण्णं एतेसिं चेव अफुसित्ता णं गती पवत्तइ । से त्तं अफुसमाणगती २ । [११०७ प्र.] अस्पृशद्गति किसे कहते हैं ? [११०७ उ.] उन्हीं पूर्वोक्त परमाणु पुद्गलों से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्धों की परस्पर स्पर्श किये बिना ही जो गति होती है; वह अस्पृशद्गति है । यह हुआ अस्पृशद्गति का स्वरूप ॥ २ ॥ १९०८. से किं तं उवसंपज्जमाणगती ? उवसंपज्जमाणगती जण्णं रायं वा जुवरायं वा ईसरं वा तलवरं वा माडंबियं वा कोडुंबियं वा इब्धं वा सिद्धिं वा सेणावई वा सत्थवाहं वा उवसंपज्जित्ता णं गच्छति । से त्तं उवसंपज्जमाणगगी३ । [११०८ प्र.] वह उपसम्पद्यमानगति क्या है ? [११०८ उ.] उपसम्पद्यमानगति वह है, जिसमें व्यक्ति राजा, युवराज, ईश्वर (ऐश्वर्यशाली), तलवर (किसी नृप द्वारा नियुक्त पट्टधर शासक ), माडम्बिक (मण्डलाधिपति), इभ्य ( धनाढ्य ), सेठ, सेनापति या सार्थवाह को आश्रय करके (उनके सहयोग या सहारे से) गमन करता हो। यह हुआ उपसम्पद्यमानगति का स्वरूप ॥ ३ ॥ ११०९. से किं तं अणुवसंपज्जमाणगती ? अणुवसंपज्जमाणगती जण्णं एतेसिं चेव अण्णमण्णं अणुवसंपज्जित्ता णं गच्छति । से तं अणुवसंपज्जमाणगती ४ । [११०९ प्र.] वह अनुपसम्पद्यमानगति क्या है ? [११०९ उ.] इन्हीं पूर्वोक्त (राज आदि) का परस्पर आश्रय न लेकर जो गति होती है, वह अनुपसम्पद्यमान गति है। यह हुआ अनुपसम्पद्यमान गति का स्वरूप ॥४॥ १११०. से किं तं पोग्गलगती ? पोग्गलगती जणं परमाणुपोग्गलाणं जाव अनंतपएसियाणं खंधाणं गती पवत्तति । से तं पोग्गलगती ५ । [१११० प्र.] पुद्गलगति क्या है ? [१११० उ.] परमाणु पुद्गलों की यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्धों की गति पुद्गलगति है ।
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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