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________________ २४४] [प्रज्ञापनासूत्र आहारगसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य ६ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य कम्मासरीरकायप्पओगी य ७ अहवेगे य ओरालियमीसगसरीरकायप्पओगी य आहारगसरीरकायपपओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य ८ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगिणो य आहारगसरीरकायप्पओगी य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य कम्मासरीरकायप्पओगी य ९ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगिणो य आहारगसरीरकायप्पओगी य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य कम्मासरीरकायपपओगिणो य १० अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगिणी य आहारगसरीरकायप्पओगी य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य कम्मासरीरकायप्पओगी य ११ अहवेगे य रालियमीसासरीरकायप्पओगिणोय आहारगसरीरकायप्पओगी आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य १२ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगिणो य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमोसासरीरकायप्पओगी य कम्मासरीरकायप्पओगी य १३ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगिणो य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य १४ अहवेगे य ओरालियमीसासरीरकायप्पओगिणो य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य कम्मासरीरकायप्पओगी य १५ अहवेगे य. ओरालियमीसासरीरकायप्पओगिणो य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य १६, एवं एते चउसंजोएणं सोलस भंगा भवंति । सव्वे वि य णं सपिंडिया असीतिं भंगा भवंति ८० । [१०८३ प्र.] भगवन् ! मनुष्य क्या सत्यमनःप्रयोगी अथवा यावत् कार्मणशरीरकाय-प्रयोगी होते हैं ? [१०८३ उ.] गौतम ! मनुष्य सत्यमन:प्रयोगी यावत् (अर्थात्- चारों प्रकार के मनःप्रयोगी, चारों प्रकार के वचनप्रयोगी) औदारिकशरीरकाय-प्रयोगी भी होते हैं, वैक्रियशरीरकाय-प्रयोगी भी होते हैं, और वैक्रियमिश्रशरीरकाय-प्रयोगी भी होते हैं। १. अथवा कोई एक औदारिकमिश्रशरीरकाय-प्रयोगी होता है, २. अथवा अनेक (मनुष्य) औदारिकमिश्रशरीरकाय-प्रयोगी होते हैं, ३. अथवा कोई एक आहारकशरीरकायप्रयोगी होता है, ४. अथवा अनेक आहारकशरीरकाय-प्रयोगी होते हैं, अथवा ५. कोई एक आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी होता है, ६.अथवा अनेक आहारकमिश्रशरीरकाय-प्रयोगी होते हैं,७. अथवा कोई एक कार्मणशरीरकायप्रयोगी होता हैं, ८. अथवा अनेक कार्मणशरीरकाय-प्रयोगी होते हैं। (इस प्रकार) एक-एक के (संयोग से) ये आठ भंग होते हैं। १. अथवा कोई एक (मनुष्य) औदारिकमिश्रशरीरकाय-प्रयोगी और एक आहारकशरीरकाय-प्रयोगी होता है, २. अथवा एक औदारिकमिश्रशरीरकाय-प्रयोगी और अनेक आहारकमिश्रशरीरकाय-प्रयोगी होते हैं,
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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