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सोलहवाँ प्रयोगपद]
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सत्यमन:प्रयोग से लेकर असत्यामृषावचन-प्रयोग, ९-वैक्रियशरीरकाय-प्रयोग, १०-वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोग और ११-कार्मणशरीरकायप्रयोग ।
१०७१. एवं असुरकुमाराण वि जाव थणियकुमाराणं । [१०७१.] इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमारों तक के (प्रयोगों के विषय में समझना चाहिए ।) १०७२. पुढविक्काइयाणं पुच्छा।
गोयमा ! तिविहे पओगे पण्णत्ते । तं जहा- ओरालियसरीरकायप्पओगे १ ओरालियमीससरीरकायप्पओगे २ कम्मासरीरकायप्पओगे ३। एवं जाव वणप्फइकाइयाणं । णवरं वाउकाइयाणं पंचविहे पओगे पण्णत्ते, तं जहा-ओरालियसरीरकायप्पओगे १ ओरालियमीससरीरकायप्पओगे २ वेउव्विए दुविहे ४ कम्मासरीरकायप्पओगे य ५ ।
[१०७२ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के कितने प्रयोग कहे गए हैं ?
[१०७२ उ.] गौतम ! उनके तीन प्रकार के प्रयोग कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं- १. औदारिकशरीरकायप्रयोग, २. औदारिकमिश्रशरीरकाय-प्रयोग और ३. कार्मणशरीरकाय-प्रयोग। इसी प्रकार (अप्कायिकों से लेकर) वनस्पतिकायिकों तक समझना चाहिए। विशेष यह है कि वायुकायिकों के पांच प्रकार के प्रयोग कहे हैं, वे इस प्रकार- १. औदारिकशरीरकाय-प्रयोग २. औदारिकमिश्रशरीरकाय-प्रयोग, ३-४. वैक्रियशरीरकायप्रयोग और वैक्रियमिश्रशरीरकाय-प्रयोग तथा ५. कार्मणशरीरकाय-प्रयोग ।
१०७३. बेइंदियाणं पुच्छा।
गोयमा ! चउब्विहे पओगे पण्णत्तेतं जहा - असच्चामोसवइप्पओगे १ ओरालियसरीरकायप्पओगे २ ओरालिंयमीसरीरकायप्पओगे ३ कम्मासरीरकायप्पओगे ४ । एवं जाव चउर दियाणं ।
[१०७३ प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रियजीवों के कितने प्रकार के प्रयोग कहे गए हैं ?
[१०७३ उ.] गौतम ! (उनके) चार प्रकार के प्रयोग कहे गए हैं, वे इस प्रकार- (१) असत्यामृषावचनप्रयोग, (२) औदारिकशरीरकाय-प्रयोग, (३) औदारिकमिश्रशरीरकाय-प्रयोग और (४) कार्मणशरीरकायप्रयोग।
१०७४. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ।
गोयमा ! तेरसविहे पओगे पण्णत्ते । तं जहा- सच्चमणप्पओगे १ मोसमणप्पओगे २ सच्चामोसमणप्पओगे ३ असच्चामोसमणप्पओगे ४ एवं वइप्पओगे वि ८ ओरालियसरीरकायप्पओगे ९ ओरालियमीससरीरकायप्पओगे १० वेउव्वियसरीरकायप्पओगे ११ वेउव्वियमीससरीरकायप्पओगे १२ कम्मासरीरकायप्पओगे १३ ।
[१०७४ प्र.] भगवन् ! पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों के कितने प्रकार के प्रयोग कहे गए हैं ?