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________________ २१८] [प्रज्ञापनासूत्र द्रव्येन्द्रियों की प्ररूपणा) इसी प्रकार (पूर्ववत्) (समझनी चाहिए ।) विशेष यह है कि (मनुष्यों की) स्वस्थान में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं, बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात हैं और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं । [३] मणूसाणं भंते ! विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीता ? संखेजा। केवतिया बद्धेल्लगा? णत्थि । केवतिया पुरेक्खडा? सिय संखेजा सिय असंखेज्जा । एवं सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते वि । [१०५०-३ प्र.] भगवन् ! मनुष्यों की विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित-देवत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [१०५०-३ उ.] (गौतम ! वे) संख्यात हैं । [प्र.] (उनकी) बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [उ.] (गौतम !) नहीं हैं। [प्र.] (उनकी) पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] (गौतम ! वे) कदाचित् संख्यात हैं, कदाचित् असंख्यात हैं । इसी प्रकार सर्वार्थसिद्ध देवत्वरूप में भी (अतीत, बद्ध, पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता समझ लेनी चाहिए)। १०५१. वाणमंतर-जोइसियाणं जहा णेरड्याणं (सु. १०४८)। [१०५१] (बहुत-से) वाणव्यन्तर और ज्योतिष्क देवों की अतीत, बद्ध, पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियों) की वक्तव्यता (नैरयिकत्व से लेकर सर्वार्थसिद्धदेवत्व रूप तक में सू. १०४८ में उक्त) नैरयिकों की (वक्तव्यता के समान जानना चाहिए)। १०५२. सोहम्मगदेवाणं एवं चेव । णवरं विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवत्ते अतीता असंखेजा, बद्धेल्लगा णत्थि, पुरेक्खडा असंखेजा । सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते अतीता णत्थि, बद्धेल्लगा णत्थि, पुरेक्खडा असंखेजा। [१०५२.] सौधर्म देवों की अतीतादि की वक्तव्यता इसी प्रकार है। विशेष यह है कि विजय, वैजयन्त, जयन्त तथा अपराजितदेवत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ असंख्यात हैं, बद्ध नहीं है तथा पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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