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________________ १९८]. [प्रज्ञापनासूत्र १०२७.[१] पुढविकाइयाणं भंते ! कति दव्विंदिया पण्णत्ता ? गोयमा ! एगे फासेंदिए पण्णत्ते । [१०२७-१ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के कितनी द्रव्येन्द्रियाँ कही गई हैं ? [१०२७-१ उ.] गौतम ! (उनके केवल) एक स्पर्शनेन्द्रिय कही है। [२] एवं जाव वणप्फातिकाइयाणं। . [१०२७-२] (अप्कायिकों से लेकर) वनस्पतिकायिकों तक के इसी प्रकार (एक स्पर्शनेन्द्रिय समझनी चाहिए ।) १०२८.[१] बेइंदियाणं भंते ! कति दव्विंदिया पण्णत्ता? गोयमा ! दो दव्विंदिया पण्णत्ता । तं जहा - फासिंदिए य जिब्भिंदिय ।. [१०२८-१ प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीवों के कितनी द्रव्येन्द्रियाँ कही गई हैं ? [१०२८-१ उ.] गौतम ! उनके दो द्रव्येन्द्रियाँ कही गई हैं, वे इस प्रकार - स्पर्शनेन्द्रिय और जिह्वेन्द्रिय। [२] तेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा ! चत्तारि दव्विंदिया पण्णत्ता । तं जहा - दो घाणा २ जीहा ३ फासे ४ । [१०२८-२ प्र.] भगवन् ! त्रीन्द्रिय जीवों के कितनी द्रव्येन्द्रियाँ कही गई हैं ? [१०२८-२ उ.] गौतम ! (उनके) चार द्रव्येन्द्रियाँ कही गई हैं, वे इस प्रकार - दो घ्राण, जिह्वा और स्प र्शन। [३] चउर दियाणं पुच्छा। गोयमा ! छ दव्विंदिया पण्णत्ता । तं जहा - दो णेत्ता २ दो घाणा ४ जीहा ५ फासे ६ । [१०२८-३ प्र.] भगवन् ! चतुरिन्द्रिय जीवों के कितनी द्रव्येन्द्रियाँ कही गई हैं ? [१०२८-३ उ.] गौतम ! उनके छह द्रव्येन्द्रियाँ कही गई हैं, वे इस प्रकार - दो नेत्र, दो घ्राण, जिह्रा और स्पर्शन । १०२९. सेसाणं जहा णेरइयाणं; (सु. १०२६ [१]) जाव वेमाणियाणं । [१०२९] शेष सबके (तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों, मनुष्यों, वाणव्यन्तरों, ज्योतिष्कों) यावत् वमानिकों के (सू. १०२६-१ में उल्लिखित) नैरयिकों की तरह (आठ द्रव्येन्द्रियाँ कहनी चाहिए ।) विवेचन - ग्यारहवाँ द्रव्येन्द्रियद्वार - प्रस्तुत छह सूत्रों (सू. १०२४ से १०२९ तक) में द्रव्येन्द्रियों के
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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