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[प्रज्ञापनासूत्र
१०२७.[१] पुढविकाइयाणं भंते ! कति दव्विंदिया पण्णत्ता ? गोयमा ! एगे फासेंदिए पण्णत्ते । [१०२७-१ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के कितनी द्रव्येन्द्रियाँ कही गई हैं ? [१०२७-१ उ.] गौतम ! (उनके केवल) एक स्पर्शनेन्द्रिय कही है। [२] एवं जाव वणप्फातिकाइयाणं। .
[१०२७-२] (अप्कायिकों से लेकर) वनस्पतिकायिकों तक के इसी प्रकार (एक स्पर्शनेन्द्रिय समझनी चाहिए ।)
१०२८.[१] बेइंदियाणं भंते ! कति दव्विंदिया पण्णत्ता? गोयमा ! दो दव्विंदिया पण्णत्ता । तं जहा - फासिंदिए य जिब्भिंदिय ।. [१०२८-१ प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीवों के कितनी द्रव्येन्द्रियाँ कही गई हैं ? [१०२८-१ उ.] गौतम ! उनके दो द्रव्येन्द्रियाँ कही गई हैं, वे इस प्रकार - स्पर्शनेन्द्रिय और जिह्वेन्द्रिय। [२] तेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा ! चत्तारि दव्विंदिया पण्णत्ता । तं जहा - दो घाणा २ जीहा ३ फासे ४ । [१०२८-२ प्र.] भगवन् ! त्रीन्द्रिय जीवों के कितनी द्रव्येन्द्रियाँ कही गई हैं ?
[१०२८-२ उ.] गौतम ! (उनके) चार द्रव्येन्द्रियाँ कही गई हैं, वे इस प्रकार - दो घ्राण, जिह्वा और स्प र्शन।
[३] चउर दियाणं पुच्छा। गोयमा ! छ दव्विंदिया पण्णत्ता । तं जहा - दो णेत्ता २ दो घाणा ४ जीहा ५ फासे ६ । [१०२८-३ प्र.] भगवन् ! चतुरिन्द्रिय जीवों के कितनी द्रव्येन्द्रियाँ कही गई हैं ?
[१०२८-३ उ.] गौतम ! उनके छह द्रव्येन्द्रियाँ कही गई हैं, वे इस प्रकार - दो नेत्र, दो घ्राण, जिह्रा और स्पर्शन ।
१०२९. सेसाणं जहा णेरइयाणं; (सु. १०२६ [१]) जाव वेमाणियाणं ।
[१०२९] शेष सबके (तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों, मनुष्यों, वाणव्यन्तरों, ज्योतिष्कों) यावत् वमानिकों के (सू. १०२६-१ में उल्लिखित) नैरयिकों की तरह (आठ द्रव्येन्द्रियाँ कहनी चाहिए ।)
विवेचन - ग्यारहवाँ द्रव्येन्द्रियद्वार - प्रस्तुत छह सूत्रों (सू. १०२४ से १०२९ तक) में द्रव्येन्द्रियों के