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[प्रज्ञापनासूत्र [१०१८ प्र.] भगवन् ! व्यंजनावग्रह कितने प्रकार का कहा गया है ?
[१०१८ उ.] गौतम ! (व्यञ्जनावग्रह) चार प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार- श्रोत्रेन्द्रियावग्रह, घ्राणेन्द्रियावग्रह, जिह्वेन्द्रियावग्रह और स्पर्शेन्द्रियावग्रह ।
१०१९. अत्थोग्गहे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ?
गोयमा ! छविहे अत्थोग्गहे पण्णत्ते । तं जहा- सोइंदियअत्थोग्गहे चक्खिदियअत्थोग्गहे घाणिदियअत्थोग्गहे जिभिदियअत्थोग्गहे फासिंदियअत्थोग्गहे णोइंदियअस्थोग्गहे।
[१०१९ प्र.] भगवन् ! अर्थावग्रह कितने प्रकार का कहा गया है ?
[१०१९ उ.] गौतम ! अर्थावग्रह छह प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार-श्रोत्रेन्द्रिय-अर्थावग्रह, चक्षुरिन्द्रिय-अर्थावग्रह, घ्राणेन्द्रिय-अर्थावग्रह, जिह्वेन्द्रिय-अर्थावग्रह, स्पर्शेन्द्रिय-अर्थावग्रह और नोइन्द्रिय (मन)-अर्थावग्रह ।
१०२०.[१]णेरइयाणं भंते ! कतिविहे उग्गहे पण्णत्ते ! गोयमा ! दुविहे उग्गहे पण्णत्ते । तं जहा- अत्थोग्गहे य वंजणोग्गहे य । .. [१०२०-१ प्र.] भगवन् ! नैरयिकों के कितने अवग्रह कहे गए हैं ? [१०२०-१ उ.] गौतम ! (उनके) दो प्रकार के अवग्रह कहे हैं, यथा - अर्थावग्रह और व्यंजनावग्रह। . [२] एवं असुरकुमाराणं जाव थणियकुमाराणं ।
[१०२०-२] इसी प्रकार असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक (के अवग्रह के विषय में कहना चाहिए)।
१०२१.[१] पुढविकाइयाणं भंते ! कतिविहे उग्गहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे उग्गहे पण्णत्ते । तं जहा - अत्थोग्गहे य वंजणोग्गहे य। [१०२१-१ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के कितने अवग्रह कहे गए हैं ?
[१०२१-१ उ.] गौतम ! (उनके) दो प्रकार के अवग्रह कहे गए हैं। वे इस प्रकार - अर्थावग्रह और व्यंजनावग्रह ।
[२] पुढविकाइयाणं भंते ! वंजणोग्गहे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! एगे फासिंदियअत्थोग्गहे पण्णत्ते ।। [१०२१-२ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के व्यंजनावग्रह कितने प्रकार के कहे गए हैं ?