SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९४] ) [प्रज्ञापनासूत्र [१०१८ प्र.] भगवन् ! व्यंजनावग्रह कितने प्रकार का कहा गया है ? [१०१८ उ.] गौतम ! (व्यञ्जनावग्रह) चार प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार- श्रोत्रेन्द्रियावग्रह, घ्राणेन्द्रियावग्रह, जिह्वेन्द्रियावग्रह और स्पर्शेन्द्रियावग्रह । १०१९. अत्थोग्गहे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! छविहे अत्थोग्गहे पण्णत्ते । तं जहा- सोइंदियअत्थोग्गहे चक्खिदियअत्थोग्गहे घाणिदियअत्थोग्गहे जिभिदियअत्थोग्गहे फासिंदियअत्थोग्गहे णोइंदियअस्थोग्गहे। [१०१९ प्र.] भगवन् ! अर्थावग्रह कितने प्रकार का कहा गया है ? [१०१९ उ.] गौतम ! अर्थावग्रह छह प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार-श्रोत्रेन्द्रिय-अर्थावग्रह, चक्षुरिन्द्रिय-अर्थावग्रह, घ्राणेन्द्रिय-अर्थावग्रह, जिह्वेन्द्रिय-अर्थावग्रह, स्पर्शेन्द्रिय-अर्थावग्रह और नोइन्द्रिय (मन)-अर्थावग्रह । १०२०.[१]णेरइयाणं भंते ! कतिविहे उग्गहे पण्णत्ते ! गोयमा ! दुविहे उग्गहे पण्णत्ते । तं जहा- अत्थोग्गहे य वंजणोग्गहे य । .. [१०२०-१ प्र.] भगवन् ! नैरयिकों के कितने अवग्रह कहे गए हैं ? [१०२०-१ उ.] गौतम ! (उनके) दो प्रकार के अवग्रह कहे हैं, यथा - अर्थावग्रह और व्यंजनावग्रह। . [२] एवं असुरकुमाराणं जाव थणियकुमाराणं । [१०२०-२] इसी प्रकार असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक (के अवग्रह के विषय में कहना चाहिए)। १०२१.[१] पुढविकाइयाणं भंते ! कतिविहे उग्गहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे उग्गहे पण्णत्ते । तं जहा - अत्थोग्गहे य वंजणोग्गहे य। [१०२१-१ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के कितने अवग्रह कहे गए हैं ? [१०२१-१ उ.] गौतम ! (उनके) दो प्रकार के अवग्रह कहे गए हैं। वे इस प्रकार - अर्थावग्रह और व्यंजनावग्रह । [२] पुढविकाइयाणं भंते ! वंजणोग्गहे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! एगे फासिंदियअत्थोग्गहे पण्णत्ते ।। [१०२१-२ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के व्यंजनावग्रह कितने प्रकार के कहे गए हैं ?
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy