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________________ पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद : प्रथम उद्देशक) [१८५ १००३. [१] जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे किण्णा फुडे ? कतिहिं वा काएहिं फुडे ? किं धम्मत्थिकाएणं जाव आगासत्थिकाएणं फुडे ? गोयमा ! णो धम्मत्थिकाएणं फुडे धम्मत्थिकायस्स देसेणं फुडे धम्मत्थिकायस्स पएसेहिं फुडे, एवं अधम्मत्थिकायस्स वि आगासस्थिकायस्स वि, पुढविकाइएणं फुडे जाव वणप्फइकाएणं फुडे, तसकाएणं सिय फुडे, सिय णो फुडे, अद्धासमएणं फुडे । [१००३-१ प्र.] भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप किससे स्पृष्ट है ? या (वह) कितने कायों से स्पृष्ट है? क्या वह धर्मास्तिकाय से (लेकर पूर्वोक्तनुसार) यावत् आकाशस्तिकाय से स्पृष्ट है ? (पूर्वोक्त परिपाटी के अनुसार 'अद्धा-समय' तक के स्पर्श-सम्बन्धी सभी प्रश्न यहाँ समझने चाहिए ।) [१००३-१ उ.] गौतम ! (वह) धर्मास्तिकाय (समग्र) से स्पृष्ट नहीं है, (किन्तु) धर्मास्तिकाय के देश से स्पृष्ट है तथा धर्मास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट है। इसी प्रकार वह अधर्मास्तिकाय और आकाशस्तिकाय के देश और प्रदेशों से स्पृष्ट है, पृथ्वीकाय से (लेकर) यावत् वनस्पतिकाय से स्पृष्ट है (तथा) त्रसकाय से कथंचित् स्पृष्ट है, कथंचित् स्पृष्ट नहीं है: अद्धा-समय (कालद्रव्य) से स्पृष्ट है। [२] एवं लवणसमुद्दे धायइसंडे दीवे कालोए समुद्दे अन्भिंतरपुक्खरद्धे। बाहिरपुक्खरद्धे एवं चेव, णवरं अद्धासमएणं णो फुडे। एवं जाव सयंभुरमणे समुद्दे। एसा परिवाडी इमाहिं गाहाहिं अणुगंतव्वा। तं जहा -- जंबुद्दीवे लवणे धायइ कालोय पुक्खरे वरुणे। खीर घत खोत नंदिय अरुणवरे कुंडले रुयए ॥२०४॥ आभरण-वत्थ-गंधे उप्पल-तिलए य पुढवि-णिहि-रयणे । वासहर-दह-नदीओ विजया वक्खार-कप्पिंदा ॥२०५॥ कुरु-मंदर-आवासा कूडा णक्खत्त-चंद-सूरा य । देवे णागे जक्खे भूए य सयंभरमणे य ॥२०६॥ एवं जहा बाहिरपुक्खरद्धे भणितं तहा जाव सयंभुरमणे समुद्दे जाव अद्धासमएणं णो फुडे । [१००३-१ प्र.] इसी प्रकार लवणसमुद्र, धातकीखण्डद्वीप, कालोदसमुद्र, आभ्यन्तर पुष्करार्द्ध और बाह्य पुष्करार्द्ध (द्वीप) के विषय में इसी प्रकार की (पूर्वोक्तानुसार धर्मास्तिकायादि से लेकर अद्धा-समय तक की अपेक्षा से स्पृष्ट-अस्पृष्ट की प्ररूपणा करनी चाहिए।) विशेष यह है कि बाह्य पुष्करार्ध से लेकर आगे के समुद्र एवं द्वीप अद्धा-समय से स्पृष्ट नहीं हैं। स्वयम्भूरमणसमुद्र तक इसी प्रकार (की प्ररूपणा करनी चाहिए।) यह परिपाटी (द्वीप-समुद्रों का क्रम) इन गाथाओं के अनुसार जान लेनी चाहिए । यथा -- ___ [गाथार्थ - ] १. जम्बूद्वीप, २. लवणसमुद्र, ३. धातकीखण्डद्वीप, ४. पुष्करद्वीप, ५. वरुणद्वीप, ६. क्षीरवर, ७. घृतवर, ८. क्षोद (इक्षु), ९. नन्दीश्वर, १०. अरुणवर, ११. कुण्डलवर, १२. रुचक, १३. आभरण,
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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