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प्रज्ञापनासूत्र
९८५.[१] पुढविकाइयाणं भंते ! कति इंदिया पण्णत्ता? गोयमा ! एगे फासिंदिए पण्णत्ते । [९८५-१ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों के कितनी इन्द्रियाँ कही गई हैं ? [९८५-१ उ.] गौतम ! (उनके) एक स्पर्शनेन्द्रिय (ही) कही है। " [२] पुढविकाइयाणं भंते ! फासिंदिए किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! मसूरचंदसंठिए पण्णत्ते । [९८५-२ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय किस आकार (संस्थान) की कही गई है ? [९८५-२ उ.] गौतम ! (उनकी स्पर्शनेन्द्रिय) मसूर-चन्द्र के आकार की कही है। [३] पुढविकाइयाणं भंते ! फासिंदिए केवतियं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! अंगुलस्स असंखेजइभागं बाहल्लेणं पण्णत्ते ।। [९८५-३ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय का बाहल्य (स्थूलता) कितमा कहा गया है ? [९८५-३ उ.] गौतम ! (उसका) बाहल्य अंगुल से असंख्यातवें भाग (-प्रमाण) कहा है। [४] पुढविकाइयाणं भंते ! फासिंदिए कतिपएसिए पण्णत्ते ? गोयमा ! अणंतपएसिए पण्णत्ते । [९८५-५ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय कितने प्रदेशों की कही हैं ? [९८५-५ उ.] गौतम ! अनन्तप्रदेशी कही गई है । [६] पुढविकाइयाणं भंते ! फासिंदिए कतिपएसोगाढे पण्णत्ते ? गोयमा ! असंखेजपएसोगाढे पण्णत्ते । [९८५-६ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय कितने प्रदेशों में अवगाढ कही है ? [९८५-६ उ.] गौतम ! असंख्यातप्रदेशों में अवगाढ कही है।
[७] एतेसि णं भंते ! पुढविकाइयाणं फासिंदियस्स ओगाहण-पएसट्ठयाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा ! सव्वत्थोवे पुढविकाइयाणं फासिदिए ओगाहणट्ठयाए, से चेव पएसट्ठयाए अणंतगुणे। [९८५-७ प्र.] भगवन् ! इन पृथ्वीकायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय, अवगाहना की अपेक्षा और प्रदेशों की