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पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद : प्रथम उद्देशक ]
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[९८३-१ उ.] गौतम ! (उनके) पांच इन्द्रियाँ कही हैं, वे इस प्रकार - श्रोत्रेन्द्रिय से लेकर स्पर्शनेन्द्रिय तक।
[ २ ] णेरइयाणं भंते ! सोइंदिए किंसंठिए पण्णत्ते ?
'गोयमा ! कलंबुयासंठाणसंठिए पण्णत्ते । एवं जहेव ओहियाणं वत्तव्वया भणिया (सु. ९७४ तः ९८२ ) तहेव णेरइयाणं पि जाव अप्पाबहुयाणि दोण्णि वि । णवरं णेरड्याणं भंते ! फासिंदिए किंसंठिए पण्णत्ते ?
गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते । तं जहा - भवधारणिज्जे य उत्तरवेडव्विए य, तत्थ णं जे से भवधारणिज्जे से णं हुंडसंठाणसंठिए पण्णत्ते, तत्थ णं जे से उत्तरवेडव्विए से वि तहेव । सेसं तं चेव ।
[९८३-२ प्र.] भगवन् ! नारकों की श्रोत्रेन्द्रिय किस आकार की होती है ?
[९८३-२ उ.] गौतम ! ( उनकी श्रोत्रेन्द्रिय) कदम्बपुष्प के आकार की होती है। इसी प्रकार जैसे समुच्चय जीवों की पंचेन्द्रियों की वक्तव्यता कही है, वैसी ही नारकों की संस्थान, बाहल्य, पृथुत्व, कतिप्रदेश, अवगाढ और अल्पबहुत्व, इन छह द्वारों की भी वक्तव्यता कहनी चाहिए । विशेष यह है कि नैरयिकों की स्पर्शनेन्द्रिय किस आकार की कही गई है ? (इस प्रश्न के उत्तर में इस प्रकार कहा गया है - ) गौतम ! नारकों की स्पर्शनेन्द्रिय दो प्रकार की गई है, यथा भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय । उनमें से जो भवधारणीय (स्पर्शनेन्द्रिय) है, वह हुण्डकसंस्थान की है और जो उत्तरवैक्रिय स्पर्शनेन्द्रिय है, वह भी हुण्डकसंस्थान की है। शेष सब प्ररूपणा पूर्ववत् समझनी चाहिए 1)
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९८४. असुरकुमाराणं भंते ! कति इंदिया पण्णत्ता ?
गोयमा ! पंचेंदिया पण्णत्ता । एवं जहा ओहियाणं ( ९७३ तः ९८२ ) जाव अप्पाबहुयाणि दोण्णि वि । णवरं फासेंदिए दुविहे पण्णत्ते । तं जहा - भवधारणिज्जे य उत्तरवेउव्विए य । तत्थ णं जे से भवधारणिज्जे से णं समचउरंससंठाणसंठिए पण्णत्ते, तत्थ णं जे से उत्तरवेउव्विए से णं णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते । सेसं तं चेव । एवं जाव थणियकुमाराणं ।
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[९८४ प्र.] भगवन् ! असुरकुमारों के कितनी इन्द्रियाँ कही गई हैं ?
[९८४ उ.] गौतम ! (उनके) पांच इन्द्रियाँ कही हैं। इसी प्रकार जैसे (९७३ से ९८२ तक में) समुच्चय (औधिक) जीवों (के इन्द्रियों के संस्थान से लेकर दोनों प्रकार के अल्पबहुत्व तक) की वक्तव्यता कही है, उसी प्रकार असुरकुमारों की इन्द्रियसम्बन्धी वक्तव्यता कहनी चाहिए। विशेष है यह कि (इनकी) स्पर्शनेन्द्रिय दो प्रकार की कही है, यथा - भवधारणीय (स्पर्शनेन्द्रिय) समचतुरस्त्रसंस्थान वाली है और उत्तरवैक्रिय (स्पर्शनेन्द्रिय) नाना संस्थान वाली होती है। इसी प्रकार की (इन्द्रियसम्बन्धी) वक्तव्यता नागकुमार से लेकर नितकुमारों तक की (समझ लेनी चाहिए ।)