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[प्रज्ञापनासूत्र
[९४७ उ.] गौतम ! (अजीवपरिणाम) दस प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार - (१) बन्धनपरिणाम, (२) गतिपरिणाम, (३) संस्थानपरिणाम, (४) भेदपरिणाम, (५) वर्णपरिणाम, (६) गन्धपरिणाम, (७) रसपरिणाम, (८) स्पर्शपरिणाम, (९) अगुरुलघुपरिणाम और (१०) शब्दपरिणाम।
९४८. बंधणपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते । तं जहा- निबंधणपरिणामे य लुक्खबंधणपरिणामे य।
समणिद्धयाए बंधो ण होति, समलुक्खयाए वि ण होति । वेमायणिद्ध-लुक्खत्तणेण बंधो उ खंधाणं ॥१९९॥ णिद्धस्स णिद्वेण दुयाहिएणं लुक्खस्स लुक्खेण दुयाहिएणं ।
णिद्धस्स लुक्खेणण उवेइ बंधो जहण्णवज्जो विसमो समो वा ॥२०॥ [९४८ प्र.] भगवन् ! बन्धनपरिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ?
[९४८ उ.] गौतम ! (बन्धनपरिणाम) दो प्रकार का है, वह इस प्रकार- (१) स्निग्धबन्धनपरिणाम (२) रूक्षबन्धनपरिणाम ।
[गाथार्थ-] सम (समान-गुण) स्निग्धता होने से बन्ध नहीं होता और न ही सम (समानगुण) रूक्षता होने से भी बन्ध होता है। विमात्रा (विषममात्रा) वाले स्निग्धत्व और रूक्षत्व के होने पर स्कन्धों का बन्ध होता है ॥१९९ ॥ दो गुण अधिक स्निग्ध के साथ स्निग्ध का तथा दो गुण अधिक रूक्ष के साथ रूक्ष का एवं स्निग्ध का रूक्ष के साथ बन्ध होता है; किन्तु जघन्यगुण को छोड़ कर, चाहे वह सम हो अथवा विषम हो ॥२०॥
९४९. गतिपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ?
गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते ।तं जहा- फुसमाणगतिपरिणामे ये अफुसमाणगतिपरिणामे य, अहवा दीहगइपरिणामे य हस्सगइपरिणामे य ।
[९४९ प्र.] भगवन् ! गतिपरिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ?
[९४९ उ.] गौतम ! (गतिपरिणाम) दो प्रकार का कहा है। वह इस प्रकार- (१) स्पृषद्-गतिपरिणाम और (२) अस्पृशद्गतिपरिणाम, अथवा (१) दीर्घगतिपरिणाम और (२) ह्रस्वगतिपरिणाम।
९५०. संठाणपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते । तं जहा- परिमंडलसंठाणपरिणामे जाव आययसंठाणपरिणामे। [९५० प्र.] भगवन् ! संस्थानपरिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ? .