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बारहवाँ शरीरपद]
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से भी अधिक होती है।
मनुष्यों के मुक्त औदारिकशरीरों की प्ररूपणा समुच्चय मुक्त औदारिकशरीरों के समान समझनी चाहिए।
मनुष्यों के बद्ध-मुक्त वैक्रियशरीर आदि की प्ररूपणा- मनुष्यों के बद्ध वैक्रियशरीर संख्यात हैं, क्योंकि गर्भज मनुष्यों में ही वैक्रियलब्धि सम्भव है, और वह भी किसी-किसी में, सबमें नहीं। इनके मुक्त वैक्रियशरीरों का कथन औधिक मुक्त वैक्रियशरीरों के समान ही समझना चाहिए। मनुष्यों के बद्ध-मुक्त आहारकशरीरों की प्ररूपणा औधिक बद्ध-मुक्त आहारकशरीरों के समान समझनी चाहिए। मनुष्यों के बद्ध तैजस और कार्मण शरीर इन्हीं के बद्ध औदारिकशरीर के समान समझने चाहिए। मुक्त तैजस-कार्मण-शरीरों की प्ररूपणा औधिक मुक्त तैजस-कार्मण-शरीरों के समान करनी चाहिए। वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क एवं वैमानिक देवों के बद्ध-मुक्त औदारिकादि शरीरों की प्ररूपणा
९२२. वाणमंतराणं जहाणेरइयाणं ओरालिया आहारगा य। वेउव्वियसरीरगा जहा णेरइयाणं, णवरं तासिणं सेढीणं विक्खंभसूई संखेजजोयणसयवग्गपलिभागो पयरस्स। मुक्केल्लगा जहा ओहिया ओरालिया (सु. ९१० [१])। तेया-कम्मया जहा एसिं चेव वेउव्विया ।
[९२२] वाणव्यन्तर देवों के बद्ध-मुक्त औदारिक और आहारक शरीरों का निरूपण नैरयिकों के बद्धमुक्त औदारिक एवं आहारक शरीरों के समान जानना चाहिए। इनके वैक्रियशरीरों का निरूपण नैरयिकों के समान है। विशेषता यह है कि उन (असंख्यात) श्रेणियों की विष्कम्भसूची (कहनी चाहिए) । प्रतर के पूरण और अपहार में वह सूची संख्यात योजनशतवर्ग-प्रतिभाग (खण्ड) है। (इनके) मुक्त वैक्रियशरीरों का कथन औधिक औदारिकशरीरों की तरह (सू. ९१०-१ के अनुसार) समझना चाहिए। इनके बद्ध-मुक्त तैजस और कार्मण शरीरों का कथन इनके ही वैक्रियशरीरों के कथन के समान समझना चाहिए।
९२३. जोतिसियाणं एवं चेवाणवरं तासिणं सेढीणं विक्खंभसूई बेछप्पणंगुलसयवग्गपलिभागो पयरस्स।
___ [९२३] ज्योतिष्क देवों (के बद्ध-मुक्त शरीरों) की प्ररूपणा भी इसी तरह (समझनी चाहिए।) विशेषता यह है कि उन श्रेणियों की विष्कम्भसूची दो सौ छप्पन अंगुल वर्गप्रमाण प्रतिभाग (खण्ड) रूप प्रतर के पूरण और अपहार में समझना चाहिए ।
९२४. वेमाणियाणं एवं चेव । णवरं तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई अंगुलबितियवग्गमूलं ततियवग्गमूलपडुपण्णं, अहव णं अंगुलतियवग्गमूलघणपमाणमेत्ताओ सेढीओ । सेसं तं चेव।
॥पण्णवणाए भगवईए बारसमं सरीरपयं समत्तं ॥
१. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक २७९ से २८२ तक