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________________ बारहवाँ शरीरपद] [१११ होते है और वे भी असंख्यातकाल तक ही रहते हैं। उतने काल में जो अन्य मुक्त तैजसशरीर होते हैं, वे भी थोड़े ही होते हैं, क्योंकि काल थोड़ा है। इस कारण मुक्त तैजसशरीर जीववर्गप्रमाण नही होते, जीववर्ग के अनन्त-भागमात्र ही होते हैं। बद-मुक्त कार्मणशरीरों का परिमाण-भी तैजसशरीरों के समान ही समझना चाहिए। क्योंकि तैजस और कार्मणशरीरों की संख्या समान है। नैरयिकों के बद्ध-मुक्त पंच शरीरों की प्ररूपणा ९११.[१] णेरइयाणं भंते ! केवइया ओरालियसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता। तं जहा - बद्वेल्लगा य मुक्केल्लगा य। तत्थ णं जे ते बद्धेल्लगा ते णं णत्थि। तत्थ णं जेते मुक्केल्लगा तेणं अणंता जहा ओरालियमुक्केल्लगा( सु.९१०[१]) तहा भाणियव्वं। [९११-१प्र.] भगवन् ! नैरयिकों के कितने औदारिकशरीर कहे गए है ? [९११-१उ.] गौतम ! (उनके औदारिकशरीर) दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार - बद्ध और मुक्त। उनमें से जो बद्ध औदारिकशरीर हैं, वे उनके नहीं होते। जो मुक्त औदारिकशरीर हैं, वे (उनके) अनन्त होते हैं, जैसे (सू.९१०-१में ) (औघिक) औदारिक मुक्त शरीरों के विषय में कहा है, उसी प्रकार (यहाँ-नैरयिकों के मुक्त औदारिकशरीर के विषय में) भी कहना चाहिए। [२] णेरइयाणं भंते! केवइया वेउव्वियसरीरा? गोयमा! दुविहा पण्णत्ता। तं जहा - बद्धेल्लगा मुक्केल्लगा य । तत्थ णं जे ते बद्धेल्लगा ते णं असंखेजा, असंखेजाहि उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ,खेत्तओ असंखेजाओ सेढीओ पतरस्स असंखेजतिभागो, तासि णं सेढीण विक्खंभसूई अंगुलपढमवग्गमूलं बीयवग्गमूल-पडुप्पणं, अहव णं अगुंलबितियवग्गमूलघणप्पमाणमेत्ताओ सेढीओ। तत्थ णं जे ते मुक्केल्लगा ते णं जहा ओरालियस्स मुक्केल्लगा (सु.९११[१]) तहा भाणियव्वा। [९११-२प्र.] भगवन्! नैरयिकों के वैक्रियशरीर कितने कहे गए हैं ? [९११-२उ.] गौतम ! (नैरयिकों के वैक्रियशरीर) दो प्रकार के कहे गए है। वे इस प्रकार- बद्ध और मुक्त। उनमें जो बद्ध (वैक्रियशरीर) हैं, वे असंख्यात हैं। कालत:-(वे) असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी कालों में अपह्रत होते है। क्षेत्रतः- (वे)असंख्यात श्रेणी-प्रमाण हैं। (श्रेणी) प्रतर का असंख्यातवां भाग है। उन श्रेणियों की विष्कम्भसूची(विस्तार की अपेक्षा से एक प्रदेशी श्रेणी) अंगुल के प्रथम वर्गमूल को दूसरे वर्गमूल से गुणित (करने पर निष्पन्न राशि जितनी) होती है अथवा अगुंल के द्वितीय वर्गमूल के घन१. प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्रांक २७० से २७४ तक
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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