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बारहवाँ शरीरपद]
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[९१०-४ प्र.] भगवन् ! तैजसशरीर कितने कहे गए हैं?
- [९१०-४ उ.] गौतम ! (वे) दो प्रकार के कहे हैं, वे इस प्रकार - बद्ध और मुक्त। उनमें जो बद्ध हैं, वे अनन्त हैं, कालत:-अनन्त उत्सर्पिणियों-अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं, क्षेत्रतः-वे अनन्तलोकप्रमाण हैं, द्रव्यत:-सिद्धों से अनन्तगुणे तथा सर्वजीवों से अनन्तवें भाग कम हैं। उनमें से जो मुक्त हैं, वे अनन्त हैं, कालत:-वे अनन्त उत्सर्पिणियों-अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं, क्षेत्रतः- वे अनन्तलोकप्रमाण है । द्रव्यतः(वे) समस्त जीवों से अनन्तगुणे हैं तथा जीववर्ग के अनन्तवें भाग हैं।
[५] एवं कम्मगसरीरा वि भाणियव्वा। [९१०-५] इसी प्रकार कार्मण शरीर के विषय में भी कहना चाहिए।
विवेचन - पांचों बद्ध-मुक्त शरीरों का परिमाण - प्रस्तुत सूत्र (९१०-१ से ५) में द्रव्य, क्षेत्र, और काल की अपेक्षा से पांचों शरीरों के बद्ध और मुक्त शरीरों का परिणाम दिया गया है।
बद्ध और मुक्त की परिभाषा-प्ररूपणा करते समय जीवों द्वारा जो शरीर परिगृहीत (ग्रहण किए हुए) हैं, वे बद्धशरीर कहलाते हैं, जिन शरीरों का जीवों ने पूर्वभवों में ग्रहण करके परित्याग कर दिया है, वे मुक्तशरीर कहलाते हैं।
बद्ध -मुक्त शरीरों का परिमाण-पांचों शरीरों के बद्धरूप और मुक्तरूप का द्रव्य की अपेक्षा से अभव्य आदि से, क्षेत्र की अपेक्षा से श्रेणि, प्रतर आदि से और काल की अपेक्षा से आवलिकादि द्वारा परिमाण का विचार शास्त्रकारों ने किया है।
बद्ध और मुक्त औदारिकशरीरों का परिमाण - बद्ध औदारिकशरीर असंख्यात हैं। यद्यपि बद्ध औदारिकशरीर के धारक जीव अनन्त हैं, तथापि यहाँ जो बद्ध औदारिकशरीरों का परिमाण असंख्यात कहा है, उसका कारण यह है-औदारिकशरीरधारी जीव दो प्रकार के होते हैं-प्रत्येक-शरीरी और अनन्तकायिक। प्रत्येकशरीरी जीवों का अलग-अलग औदारिकशरीर होता है, किन्तु जो अनन्तकायिक होते हैं, उनका औदारिकशरीरपृथक्-पृथक् नहीं होता, अनन्तानन्त जीवों का एक ही होता है। इस कारण औदारिकशरीरी जीव अनन्तानन्त होते हुए भी उनके शरीर असंख्यात ही हैं। काल की अपेक्षा से- बद्धऔदारिक शरीर असंख्यात उत्सर्पिणियों और असंख्यात अवसर्पिणियों में अपहृत होते हैं, इसका तात्पर्य यह है कि यदि उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल के एक-एक समय में एक-एक औदारिकशरीर का अपहरण किया जाए तो समस्त औदारिकशरीरों का अपहरण करने में असंख्यात उत्सर्पिणियाँ और अवसर्पिणियाँ व्यतीत हो जाएँ। क्षेत्र की अपेक्षा से-बद्धऔदारिक शरीर असंख्यातलोकप्रमाण हैं, इसका अर्थ हुआ-अगर समस्त बद्ध औदारिक शरीरों को अपनी-अपनी अवगाहना से परस्पर अपिण्डरूप में (पृथक्-पृथक्) आकाशप्रदेशों में स्थापित किया जाए तो असंख्यातलोकाकाश उन पृथक्-पृथक् स्थापित शरीरों से व्याप्त हो जाएँ। मुक्त औदारिक शरीर अनन्त होते हैं, उनका परिमाण कालतः अनन्त उत्सर्पिणियों-अवसर्पिणियों के अपहरणकाल