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बारहवाँ शरीरपद]
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[९०६ प्र.] भगवन्! वायुकायिकों में कितने शरीर कहे गए हैं ?
[९०६ उ.] गौतम! (उनके) चार शरीर कहे हैं, वे इस प्रकार-औदारिक, वैक्रिय तैजस और कार्मण शरीर।
९०७. एवं पंचिंदियतिरिक्खजोणियाण वि। [९०७] इसी प्रकार पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों के शरीरों के विषय में भी समझना चाहिए। ९०८. मणूसाणं भंते ! कति सरीरया पण्णत्ता? गोयमा ! पंच सरीरया पण्णत्ता। तं जहा - ओरालिए वेउव्विए आहारए तेयए कम्मए। [९०८ प्र.] भगवन् ! मनुष्यों के कितने शरीर कहे गए हैं ?
[९०८ उ.] गौतम ! मनुष्यों के पांच शरीर कहे गए हैं, वे इस प्रकार - औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण।
९०९. वाणमंतर-जोतिसिय-वेमाणियाणं जहा णारगाणं [ सु. ९०२ ]।
[९०९] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों के शरीरों की वक्तव्यता नारकों की तरह (सू. ९०२ से अनुसार) कहना चाहिए।
विवेचन - चौवीस दण्डकवर्ती जीवों में शरीरप्ररूपणा - नैरयिक से लेकर वैमानिक तक २४ दण्डकों मे से किसमें कितने शरीर पाए जाते हैं ? इसकी प्ररूपणा प्रस्तुत आठ सूत्रों में की गई है। . पांचों शरीरों के बद्ध-मुक्त शरीरों का परिमाण
९१०. [१] केवइया णं भंते ! ओरालियसरीरया पण्णत्ता?
गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता। तं जहा-बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य। तत्थ णं जे ते बदल्लगा ते णं असंखेजगा, असंखेजाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखेजा लोगा। तत्थ णं जे ते मुक्केल्लगा ते णं अणंता, अणंताहिं उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ अणंता लोगा, दव्वओ अभवसिद्धिएहितो अणंतगुणा सिद्धाणं अणंतभागो।
[९१०-१ प्र.] भगवन् ! औदारिक शरीर कितने कहे गए हैं?
[९१०-१ उ.] गौतम ! (वे) दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा - बद्ध और मुक्त । उनमें जो बद्ध (जीव के द्वारा ग्रहण किए हुए) हैं, वे असंख्यात हैं, काल से-वे असंख्यात उत्सर्पिणियों-अवसर्पिणियों (कालचक्रों) से अपहृत होते हैं । क्षेत्र से-असंख्यातलोक-प्रमाण हैं। उनमें जो मुक्त (जीव के द्वारा छोड़े हुए-त्यागे हुए) हैं, वे अनन्त हैं। काल से-वे अनन्त उत्सर्पिणियों-अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं। क्षेत्र से-अनन्तलोकप्रमाण