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। प्रज्ञापनासूत्र
योगबल से जिस शरीर का आहरण-निष्पादन किया जाता है, उसे आहारकशरीर कहते हैं। तेज का जो विकार हो, उसे तैजस शरीर और जो शरीर कर्म का समूह रूप हो, उसे कर्मज या कार्मण शरीर कहते हैं।
उत्तरोत्तर सूक्ष्मशरीर - औदारिक आदि शरीरों का इस प्रकार का क्रम रखने का करण उनकी उत्तरोत्तर सूक्ष्मता है। चौबीस दण्डकवर्ती जीवों में शरीर-प्ररूपणा
९०२. णेरइयाणं भंते! कति सरीरया पण्णत्ता? गोयमा! तओ सरीरया पण्णत्ता। तं जहा - वेउव्विए तेयए कम्मए। [९०२ प्र.] भगवन्! नैरयिकों के कितने शरीर कहे गए हैं? [९०२ उ.] गौतम! उनके तीन शरीर कहे हैं, वे इस प्रकार - वैक्रिय, तैजस और कार्मण शरीर। . ९०३. एवं असुरकुमाराण वि जाव थणियकुमाराणं। [९०३] इसी प्रकार असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक के शरीरों की प्ररूपणा समझना चाहिय। ९०४. पुढविक्काइयाणं भंते ! कति सरीरया पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ सरीरया पण्णत्ता। तं जहा-ओरालिए तेयए कम्मए । [९०४ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के कितने शरीर कहे गए हैं ? [९०४ उ.] गौतम! उनके तीन शरीर कहे है, वे इस प्रकार - औदारिक, तैजस् एवं कार्मणशरीर । ९०५. एवं वाउक्काइयवजं जाव चउरिदियाणं। [९०५] इसी प्रकार वायुकायिकों को छोड़कर चतुरिन्द्रियों तक के शरीरों के विषय में जानना चाहिए। ९०६. वाउक्काइयाणं भंते ! कति सरीरया पण्णत्ता? गोयमा ! चत्तारि सरीरया पण्णत्ता। तं जहा - ओरालिए वेउव्विए तेयए कम्मए।
१. (क) प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक २६८-२६९ (ख) "औरालं नाम वित्थरालं विसालंति जंभणियं होइ, कह? साइरेगजोयणसहस्समवट्ठियप्पमाणओरालियं अन्नमेद्दहमेत्तं
नत्थित्ति विउव्वियं होज्जातंतु अणवट्ठियप्पमाणं,अवट्ठियं पुणपंच धणुसयाइं अहेसत्तमाए इमं पुण अवट्ठियप्पमाणं
साइरेगं जोयणसहस्सं.........॥" (ग) "विविहा विसिट्टगा यं किरिया, तीए उजं भवं तमिह ।
वेउव्वियं तयं पुण नारगदेवाण पगईए ॥"
-प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्रांक २६९