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________________ बारसमं सरीरपयं बारहवाँ शरीरपद प्राथमिक + यह प्रज्ञापनासूत्र का बारहवाँ शरीरपद है। संसार-दशा में शरीर के साथ जीव का अतीव निकट और निरन्तर सर्पक रहता है। शरीर और शरीर से सम्बन्धित सजीव-निर्जीव पदार्थों के प्रति मोह-ममत्व के कारण ही कर्मबन्ध होता है। अतएव शरीर के विषय में जानना आवश्यक है। शरीर क्या है? आत्मा की तरह अविनाशी है या नाशवान् ? इसके कितने प्रकार हैं? इन प्रकारों के बद्ध-मुक्त शरीरों के कितने-कितने परिमाण में हैं ? नैरयिकों से लेकर वैमानिक देवों तक किस में कितने शरीर पाए जाते हैं? आदि-आदि। इसी हेतु से शास्त्रकार ने इस पद की रचना की है। प्रस्तुत पद में जैनदृष्टि से पांच शरीरों की चर्चा है-औदारिक, वैकिय, आहारक, तैजस और कार्मण। उपनिषदों में आत्मा के अन्नमय आदि पांच कोषों की विचारणा मिलती है। उसमें से अन्नमयकोष की औदारिक शरीर के साथ तथा सांख्य आदि दर्शनों में जो अव्यक्त, सूक्ष्म या लिंगशरीर माना गया है, उसकी तुलना तैजस-कार्मणशरीर के साथ हो सकती है। प्रस्तुत पद में सर्वप्रथम औदारिकादि पांच शरीरों का निरूपण है। वृत्तिकार ने औदारिकशरीर के विभिन्न अर्थ, उसकी प्रधानता, प्रयोजन और महत्ता की दृष्टि से समझाए हैं। तीर्थंकर आदि विशिष्ट पुरुषों को औदारिक शरीर होता है तथा देवों को भी यह शरीर दुर्लभ है, इस कारण इसका प्राधान्य और महत्त्व है। नारकों और देवों के सिवाय समस्त जीवों को यह शरीर जन्म से मिलता है, इसलिए अधिकांश जीवराशि इसी स्थूल एवं प्रधान शरीर की धारक है। जो शरीर विविध एवं विशेष प्रकार की (क) पण्णवणासुत्तं (मू.पा.) भाग १, पृ. २२३ (ख) तैत्तिरीय उपनिषद् भृबुवल्ली । साँख्यकारिका ३९-४० बेलवलकर (ग) (मालवणिया) गणधरवाद प्रस्तावना । (घ) षट्खण्डागम पृ. १४, सू. १२९, २३६, पृ. २३७, ३२१
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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