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________________ ८६ ] [ प्रज्ञापनासूत्र [८७७-२०] गौतम ! वह उन (ऊर्ध्वादिगृहीत द्रव्यों) को आदि में भी ग्रहण करता है, मध्य में भी ग्रहण करता है और पर्यवसान (अन्त) में भी ग्रहण करता है। [२१] जाइं भंते ! आई पि गेण्हति मझे वि गेण्हति पजवसाणे वि गेण्हति ताई किं सविसए गेण्हति ? अविसए गेण्हति ? गोयमा ! सविसए गेण्हति, णो अविसए गेण्हति । [८७७-२१ प्र.] जिन (भाषा द्रव्यों) को जीव आदि, मध्य और अन्त में ग्रहण करता है, क्या वह उन स्वविषयक (स्पृष्ट, अवगाढ एवं अनन्तरावगाढ़) द्रव्यों को ग्रहण करता है अथवा अविषक (अस्वगोचर) द्रव्यों को ग्रहण करता है ? [८७७-२१ उ.] गौतम ! वह स्वविषयक (स्वगोचर) द्रव्यों को ग्रहण करता है, किन्तु अविषयक (अस्वगोचर) द्रव्यों को ग्रहण नहीं करता । [२२] जाइं भंते ! सविसए गेण्हति ताई किं आणुपुव्विं गेण्हति ? अणाणुपुव्विं गेण्हति ? गोयमा ! आणुपुव्विं गेण्हति, णे अणाणुपुट्विं गेण्हति । [८७७-२२ प्र.] भगवन् ! जिन स्वविषयक द्रव्यों को जीव ग्रहण करता है, क्या वह उन्हें आनुपूर्वी से ग्रहण करता है, अथवा अनानुपूर्वी से ग्रहण करता है ? [८७७-२२ उ.] गौतम ! (वह उन स्वगोचर द्रव्यों को) आनुपूर्वी से ग्रहण करता है, अनानुपूर्वी से ग्रहण नहीं करता । [२३] जाइं भंते ! आणुपुव्विं गेण्हति ताई किं तिदिसिं गेण्हति जाव छद्दिसिं गेण्हति ? गोयमा ! णियमा छद्दिसिं गेण्हति । पुट्ठोगाढ अणंतर अणू य तह बायरे य उड्डमहे। आदि विसयाऽऽणुपुव्विं णियमा तह छद्दि सिं चेव ॥१९८॥ ___ [८७७-२३ प्र.] भगवन् ! जिन द्रव्यों को जीव आनुपूर्वी से ग्रहण करता है, क्या उन्हें तीन दिशाओं से ग्रहण करता है, यावत् (अथवा) छह दिशाओं से ग्रहण करता है ? [८७७-२३ उ.] गौतम ! (वह) उन द्रव्यों को नियमतः छह दिशाओं से ग्रहण करता है। [संग्रहणीगाथार्थ - ] स्पृष्ट अवगाढ़, अनन्तरावगाढ, अणु तथा बादर, ऊर्ध्व, अधः, आदि, स्वविषयक, आनुपूर्वी तथा नियम से छह दिशाओं से (भाषायोग्य द्रव्यों को जीव ग्रहण करता है।) ८७८. जीवे णं भंते ! जाइं दव्वाइं भासत्ताए गेण्हति ताई किं संतरं गेण्हति ? निरंतरं गेण्हति ?
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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