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[प्रज्ञापनासूत्र
वाले द्रव्यों को ग्रहण नहीं करता, यावत् आठ स्पर्श वाले भाषाद्रव्यों को ग्रहण नहीं करता। सर्वग्रहण की अपेक्षा से नियमत: चार स्पर्श वाले (चतु:स्पर्शी) भाषाद्रव्यों को (वह) ग्रहण करता है: वे चार स्पर्श वाले द्रव्य इस प्रकार हैं - शीतस्पर्श वाले (द्रव्यों को) ग्रहण करता है, उष्णस्पर्श वाले (द्रव्यों को) ग्रहण करता है, स्निग्ध (चिकने) स्पर्श वाले (द्रव्यों को) ग्रहण करता है, और रूक्षस्पर्श वाले (द्रव्यों को) ग्रहण करता है।
[१४] जाइं फासओ सीयाइं गेण्हति ताइं किं एगगुणसीयाई नेण्हति जाव अणंतगुणसीयाई गेण्हति? ... गोयमा ! एगगुणसीयाइं पि गेण्हति जाव अणंतगुणसीयाई पि गेण्हति। एवं उसिण-णिद्धलुक्खाइं जाव अणंतगुणाई पि गिण्हति ।
। [८७७-१४ प्र.] स्पर्श से जिन शीतस्पर्श वाले भाषाद्रव्यां को (जीव) ग्रहण करता है, क्या (वह) एकगुण शीतस्पर्श वाले (भाषाद्रव्यों को) ग्रहण करता है, (अथवा) यावत् अनन्तगुण शीतस्पर्श वाले (भाषाद्रव्यों को) ग्रहण करता है ?
[८७७-१४ उ.] गौतम ! (वह) एकगुण शीत द्रव्यों को भी ग्रहण करता है, यावत् अनन्तगुण शीतस्पर्श वाले (भाषाद्रव्यों को) भी ग्रहण करता है। इसी प्रकार उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्श वाले (भाषाद्रव्यों के ग्रहण करने के विषय में), अनन्तगुण उष्णादि स्पर्श वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है (तेक कहना चाहिए ।)
[१५] जाइं भंते ! जाव अणंतगुणलुक्खाइं गेण्हति ताई किं पुट्ठाइं गेण्हति अपुट्ठाइं गेण्हति ? गोयमा ! पुट्ठाइं गेण्हति, णो अपुट्ठाइं गेण्हति ।
[८७७-१५ प्र.] भगवन् ! जिन एकगुण कृष्णवर्ण से लेकर अनन्तगुण रूक्षस्पर्श तक के (भाषा) द्रव्यों को (जीव) ग्रहण करता है, क्या (वह) उन स्पृष्ट द्रव्यों को ग्रहण करता है, अथवा अस्पृष्ट द्रव्यों को ग्रहण करता है? ___[८७७-१५ उ.] गौतम ! (वह) स्पृष्ट भाषाद्रव्यों को ग्रहण करता है, अस्पृष्ट द्रव्यों को ग्रहण नहीं
करता ।
[१६] जाइं भंते ! पुट्ठाइं गेण्हति ताई किं ओगाढाइं गेण्हति अणोगाढाइं गिण्हति ? गोयमा ! ओगाढाइं गेण्हति, णो अणोगाढाइं गेण्हति ।
[८७७-१६ प्र.] भगवन् ! जिन स्पृष्ट द्रव्यों को जीव ग्रहण करता है, क्या वह अवगाढ द्रव्यों को ग्रहण करता है, अथवा अनवगाढ द्रव्यों को ग्रहण करता है ?
[८७७-१६ उ.] गौतम ! वह अवगाढ द्रव्यों को ग्रहण करता है, अवगाढ द्रव्यों को ग्रहण नहीं करता।