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ग्यारहवाँ भाषापद]
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गोयमा ! गहणदव्वाइं पडुच्च एगरसाइं पि गेण्हति जाव पंचरसाइं पि गेण्हति, सव्वगहणं प णडुच्च णियमा पंचरसाइं गेण्हति।
[८७७-११ प्र.] भावतः रस वाले जिन भाषाद्रव्यों को जीव ग्रहण करता है, क्या वह एक रस वाले (भाषाद्रव्यों को) ग्रहण करता है, (अथवा) यावत् पांच रस वाले (द्रव्यों को) ग्रहण करता है ?
[८७७-११ उ.] गौतम ! ग्रहणद्रव्यों की अपेक्षा से (वह) एक रस वाले (भाषाद्रव्यों को) भी ग्रहण करता है, यावत् पांच रस वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है। किन्तु सर्वग्रहण की अपेक्षा से नियमतः पांच रस वाले भाषाद्रव्यों को ग्रहण करता है।
[१२] जाइं रसतो तित्तरसाइंगेण्हति ताई किं एगगुणतित्तरसाइंगेण्हति जाव अणंतगुणतित्तरसाइं गेण्हति ?
गोयमा ! एगगुणतित्तंरसाइं पि गेण्हति जाव अणंतगुणतित्तरसाई पि गेण्हति। एवं जाव महुरो
रसो।
. [८७७-१२ प्र.] ! रस से तिक्त (तीखे) रस वाले जिन (भाषाद्रव्यों) को ग्रहण करता है, क्या (वह) उन एकगुण तिक्तरस वाले (भाषाद्रव्यों को) ग्रहण करता है, यावत् (अथवा) अनन्तगुण तिक्तरस वाले (भाषाद्रव्यों को) ग्रहण करता है ?
[८७७-१२ उ.] गौतम ! (वह) एकगुण तिक्तरस वाले (भाषाद्रव्यों को) भी ग्रहण करता है, यावत् अनन्तगुण तिक्तरस वाले (द्रव्यों को) भी ग्रहण करता है। इसी प्रकार यावत् मधुर रस वाले भाषाद्रव्यों के ग्रहण के विषय में कहना चाहिए।
[१३] जाइं भावतो फासमंताई गेण्हति ताई किं एगफासाइं गेण्हति, जाव अट्ठफासाइं गेण्हति?
गोयमा ! गहणदव्वाइं पडुच्च णो एगफासाइं गिण्हति, दुफासाइं गिण्हति जाव चउफासाइं पि गेण्हति, णो पंचफासाइं गेण्हति, जाव णो अट्ठफासाइं पि गेण्हति। सव्वग्गहणं पडुच्च णियमा चउफासाइं गेण्हति। तं जहा - सीयफासाइं गेण्हति, उसिणफासाइं गेण्हति, णिद्धफासाइं गेण्हति, लुक्खफासाइं गेण्हति।
[८७७-१३ प्र.] भावतः जिन स्पर्श वाले भाषाद्रव्यों को (जीव) ग्रहण करता है, (तो) क्या (वह) एक स्पर्श वाले (भाषाद्रव्यों को) ग्रहण करता है, (अथवा) यावत् आठ स्पर्श वाले भाषाद्रव्यों को ग्रहण करता है ?
[८७७-१३ उ.] गौतम ! ग्रहणद्रव्यों की अपेक्षा से एक स्पर्श वाले द्रव्यों को ग्रहण नहीं करता, दो स्पर्श वाले भाषाद्रव्यों को ग्रहण करता है, यावत् चार स्पर्श वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है, किन्तु पांच स्पर्श