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[प्रज्ञापना सूत्र सम्मूच्छिम तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय एवं सम्मूछिम मनुष्य विवृत योनि वाले हैं। उनसे अयोनिक जीव अनन्तगुणे हैं, क्योंकि सिद्ध अनन्त होते हैं और उनसे भी अनन्तगुणे संवृतयोनिक जीव होते हैं, क्योंकि वनस्पतिकायिक जीव संवृतयोनिक होते हैं और वे सिद्धों से भी अनन्तगुणे होते हैं। मनुष्यों की त्रिविध विशिष्ट योनियां
७७३. [१] कतिविहा णं भंते! जोणी पण्णत्ता ? गोयमा! तिविहा जोणी पण्णत्ता। तं जहा—कुम्मुण्णया १ संखावत्ता २ वंसीपत्ता ३। [७७३-१ प्र.] भगवन् ! योनि कितने प्रकार की कही गई हैं ?
[७७३-१ उ.] गौतम! योनि तीन प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार-(१) कुर्मोन्नता, (२) शंखावर्ता और(३) वंशीपत्रा।
[२] कुम्मुण्णया णं जोणी उत्तमपुरिसमाऊणं। कुम्मुण्णयाए णं जोणीए उत्तमपुरिसा गब्भे वक्कमंति। तं जहा -अरहंता चक्कवट्टी बलदेवा वासुदेवा।
[७७३-२] कूर्मोन्नता योनि उत्तमपुरुषों की माताओं की होती है। कूर्मोन्नता योनि में (ये) उत्तमपुरुष गर्भ में उत्पन्न होते हैं। जैसे -अर्हन्त (तीर्थकर), चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव।।
[३] संखावत्ता णं जोणी इत्थिरयणस्स। संखावत्ताए णं जोणीए बहवे जीवा य पोग्गला य वक्कमंति विउक्कमति चयंति उवचयंति, नो चेव णं निष्फजंति। .
[७७३-३] शंखावर्ता योनि स्त्रीरत्न की होती है। शंखावर्ता योनि में बहुत-से जीव और पुद्गल आते हैं गर्भरूप में उत्पन्न होते हैं, सामान्य और विशेषरूप में उनकी वृद्धि (चय-उपचय) होती है, किन्तु उनकी निष्पत्ति नहीं होती। [४] वंसीपत्ता णं जोणी पिहुजणस्स। वंसीपत्ताएं णं जोणीए पिहुजणे गब्भे वक्क मंति।
॥ पण्णवणाए भगवईए णवमं जोणीपयं समत्तं ॥ . [७७३-४] वंशीपत्रा योनि पृथक् (सामान्य) जनों की (माताओं की) होती है। वंशीपत्रा योनि में पृथक् (साधारण) जीव गर्भ में आते हैं।
विवेचन–मनुष्यों की विविध योनिविशेषों की प्ररूपणा–प्रस्तुत सूत्र (७७३/१,२,३,४) में मनुष्यों की कूर्मोन्नता आदि तीन विशिष्ट योनियों, योनि वाली स्त्रियों एवं उनमें जन्म लेने वाले मनुष्यों का निरूपण किया गया है।
कूर्मोन्नता आदि योनियों का अर्थ कूर्मोन्नता योनि–जो योनि क्छुए की पीठ की तरह उन्नतऊँची उठी हुई या उभरी हुई हो। शंखावर्ता योनि–जिसके आवर्त शंख के उतार-चढ़ाव के समान हों, ऐसी योनि। वंशीपत्रा योनि–जो योनि दो संयुक्त (जुड़े हुए) वंशीपत्रों के समान आकार वाली हो।
१. प्रज्ञापनासूत्र मलय वृत्ति, पत्रांक २२७