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नौवाँ योनिपद ]
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७७२. एतेसि णं भंते! जीवाणं संवुडजोणियाणं वियडजोणियाणं संवुडवियडजोणियाणं अजोणियाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?
गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा संवुडवियडजोणिया, वियडजोणिया असंखेन्जगुणा, अजोणिया अणंतगुणा, संवुडजोणिया अणंतगुण॥ ३॥
[७७२ प्र.] भगवन् ! इन संवृतयोनिक जीवों, विवृतयोनिक जीवों, संवृत-विवृतयोनिक जीवों तथा अयोनिक जीवों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक होते हैं ?
[७७२ उ.] गौतम! सबसे कम संवृत-विवृतयोनिक जीव होते हैं (उनसे) विवृतयोनिक जीव असंख्यातगुणे (अधिक) हैं, (उनसे) अयोनिक जीव अनन्तगुणे हैं (और उनसे भी) संवृतयोनिक जीव अनन्तगुणे (अधिक) हैं ॥ ३ ॥
विवेचनतीसरे प्रकार से संवृतादि त्रिविध योनियों की अपेक्षा से जीवों का विचार—प्रस्तुत नौ सूत्रों (सू. ७६४ से ७७२ तक) में शास्त्रकार ने तृतीय प्रकार से योनियों के संवृतादि तीन भेद बता कर किस जीव के कौन-कौन-सी योनि होती है ? तथा कौन-सी योनि वाले जीव अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? इसका विचार प्रस्तुत किया है।
संवृतादि योनियों का अर्थ-संवृतयोनि–जो योनि आच्छादित(ढंकी हुई) हो। विवृतयोनिजो योनि खुली हुई हो, अथवा बाहर से स्पष्ट प्रतीत होती हो। संवृत-विवृत योनि--जो संवृत और विवृत दोनों प्रकार की हो।
किन जीवों की योनि कौन और क्यों ? –नारकों की योनि संवृत इसलिए बताई है कि नारकों के उत्पत्तिस्थान नरकनिष्कुट होते हैं और वे आच्छादित (संवृत) गवाक्ष (झरोखे) के समान होते हैं। उन स्थानों में उत्पन्न हुए नारक शरीर से वृद्धि को प्राप्त होकर शीत से उष्ण और उष्ण से शीत स्थानों में गिरते हैं। इसी प्रकार भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों की योनि संवृत होती है, क्योंकि उनकी उत्पत्ति (उपपात) देवशैया में देवदूष्य से आच्छादित स्थान में होती है। एकेन्द्रिय जीव भी संवृत योनि वाले होते हैं, क्योंकि उनकी उत्पत्तिस्थली (योनि) स्पष्ट उपलक्षित नहीं होती। द्वीन्द्रिय से लेकर चतुरिन्द्रिय तक के जीवों तथा सम्मूछिम तिर्यञ्च पंचेन्द्रियों एवं सम्मच्छिम मनुष्यों की योनि विवृत हैं, क्योंकि इनके जलाशय आदि उत्पत्तिस्थान स्पष्ट प्रतीत होते हैं । गर्भज तिर्यञ्च पंचेन्द्रियों और गर्भज मनुष्यों की योनि संवृत-विवृत होती है, कयोंकि इनका गर्भ संवृत और विवृत उभयरूप होता है। अन्दर (उदर में) रहा हुआ गर्भ स्वरूप से प्रतीत नहीं होता, किन्तु उदर के बढ़ने आदि से बाहर से उपलक्षित होता है।
संवृतादि योनियों की अपेक्षा से जीवों का अल्पबहुत्व—सबसे थोड़े संवृत-विवृत योनि वाले जीव होते हैं,क्योंकि गर्भज तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय और गर्भज मनुष्य ही संवृत-विवृत योनि वाले हैं। उनकी अपेक्षा विवृतयोनिक जीव असंख्यातगुणे हैं, कयोंकि द्वीन्द्रिय से लेकर चतुरिन्द्रिय तक के जीव तथा