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[प्रज्ञापना सूत्र
[७६४ प्र.] भगवन् ! योनि कितने प्रकार की कही गई है ?
[७६४ उ.] गौतम! योनि तीन प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार—(१) संवृत योनि, (२) विवृत योनि और (३) संवृत-विवृत योनि।
७६५. नेरइयाणं भंते! किं संवुडा जोणी वियडा जोणी संवुडवियडा जोणी ? गोयमा! संवुडा जोणी, नो वियड़ा जोणी, नो संवुडवियडा जोणी।
[७६५ प्र.] भगवन् ! नैरयिकों की क्या संवृत योनि होती है, विवृत्त योनि होती है, अथवा संवृतविवृत योनि होती है ?
[७६५ उ.] गौतम! नैरयिकों की योनि संवृत होती है, परन्तु विवृत नहीं होती और न ही संवृतविवृत होती है।
७६६. एवं जाव वणस्सइकाइयाणं। [७६६] इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक जीवों तक (की योनि के विषय में कहना चाहिए।) ७६७. बेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा! नो संवुडा जोणी, वियडा जोणी, णो संवुडवियडा-जोणी। [७६७ प्र.] भगवन्! द्वीन्द्रिय जीवों की योनि संवृत होती है, विवृत होती या संवृत-विवृत होती है ?
[७६७ उ.] गौतम! उनकी योनि संवृत नहीं होती (किन्तु) विवृत होती है, (पर) संवृत-विवृत योनि नहीं होती।
७६८. एवं जाव चउरिंदियाणं । [७६८] इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय जीवों तक (की योनि के विषय में समझ लेना चाहिए।) ७६९. सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं सम्मच्छिममणुस्साण य एवं चेव।
[७६९] सम्मूछिम पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक एवं सम्मूछिम मनुष्यों की (योनि के विषय में भी इसी प्रकार समझना चाहिए।)
७७०. गब्भवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं गब्भवक्कंतियमणुस्साण य नो संवुडा जोणी, नो वियडा जोणी, संवुडवियडा जोणी।
[७७०] गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों और गर्भज मनुष्यों की योनि संवृत नहीं होती और न विवृत योनि होती है, किन्तु संवृत-विवृत होती है।
७७१. वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियाणं जहा नेरइयाणं।
[७७१] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों की (योनि के सम्बन्ध में) नैरयिकों की (योनि की) तरह समझना चाहिए।