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________________ ५४६] [प्रज्ञापना सूत्र [७६४ प्र.] भगवन् ! योनि कितने प्रकार की कही गई है ? [७६४ उ.] गौतम! योनि तीन प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार—(१) संवृत योनि, (२) विवृत योनि और (३) संवृत-विवृत योनि। ७६५. नेरइयाणं भंते! किं संवुडा जोणी वियडा जोणी संवुडवियडा जोणी ? गोयमा! संवुडा जोणी, नो वियड़ा जोणी, नो संवुडवियडा जोणी। [७६५ प्र.] भगवन् ! नैरयिकों की क्या संवृत योनि होती है, विवृत्त योनि होती है, अथवा संवृतविवृत योनि होती है ? [७६५ उ.] गौतम! नैरयिकों की योनि संवृत होती है, परन्तु विवृत नहीं होती और न ही संवृतविवृत होती है। ७६६. एवं जाव वणस्सइकाइयाणं। [७६६] इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक जीवों तक (की योनि के विषय में कहना चाहिए।) ७६७. बेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा! नो संवुडा जोणी, वियडा जोणी, णो संवुडवियडा-जोणी। [७६७ प्र.] भगवन्! द्वीन्द्रिय जीवों की योनि संवृत होती है, विवृत होती या संवृत-विवृत होती है ? [७६७ उ.] गौतम! उनकी योनि संवृत नहीं होती (किन्तु) विवृत होती है, (पर) संवृत-विवृत योनि नहीं होती। ७६८. एवं जाव चउरिंदियाणं । [७६८] इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय जीवों तक (की योनि के विषय में समझ लेना चाहिए।) ७६९. सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं सम्मच्छिममणुस्साण य एवं चेव। [७६९] सम्मूछिम पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक एवं सम्मूछिम मनुष्यों की (योनि के विषय में भी इसी प्रकार समझना चाहिए।) ७७०. गब्भवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं गब्भवक्कंतियमणुस्साण य नो संवुडा जोणी, नो वियडा जोणी, संवुडवियडा जोणी। [७७०] गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों और गर्भज मनुष्यों की योनि संवृत नहीं होती और न विवृत योनि होती है, किन्तु संवृत-विवृत होती है। ७७१. वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियाणं जहा नेरइयाणं। [७७१] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों की (योनि के सम्बन्ध में) नैरयिकों की (योनि की) तरह समझना चाहिए।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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