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नौवाँ योनिपद ]
[५४५ __ विवेचन—प्रकारान्तर से सचित्तादि त्रिविध योनियों की अपेक्षा से सर्व जीवों का विचारप्रस्तुत दस सूत्रों (सू. ७५४ से ७६३ तक) में योनि के प्रकारान्तर से सचित्तादि तीन भेद बताकर, चौबीस दण्डकवर्ती जीवों के क्रम से किस जीव के कौन-कौन-सी योनियाँ होती हैं ? तथा कौन-सी योनि वाले जीव अल्प, बहुत या विशेषाधिक होते हैं ? इसकी चर्चा की गई है। ___ सचित्तादि योनियों के अर्थ—सचित्त योनि–जो योनि जीव (आत्म) प्रदेशों से सम्बद्ध हो। अचित्त योनि–जो योनि जीव रहित हो। मिश्र योनि–जो योनि जीव से मुक्त और अमुक्त उभयस्वरूप वाली हो, यानी जो सचित्त और अचित्त दोनों प्रकार की हो।
किन जीवों की योनि कैसी और क्यों?—नारकों के जो उपपात क्षेत्र है, वे किसी जीव के द्वारा परिगृहीत न होने से सचित्त (सजीव) नहीं होते, इस कारण उनकी योनि अचित्त ही होती है। यद्यपि सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव समस्त लोक (लोकाकाश) में व्याप्त होते हैं, तथापि उन जीवों के प्रदेशों से उन उपपातक्षेत्रों के पुद्गल परस्परानुगमरूप से सम्बद्ध नहीं होते, अर्थात्-वे उपपातक्षेत्र उन सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवों के शरीररूप नहीं होते, इस कारण नैरयिकों की योनि अचित्त ही कही गई है। इसी प्रकार असुरकुमारादि दशविध भवनपति देवों, व्यन्तरों, ज्योतिष्कों और वैमानिक देवों की योनियां भी अचित्त ही समझनी चाहिए। पृथ्वीकायिकों से लेकर सम्मूच्छिम मनुष्य पर्यन्त सबके उपपातक्षेत्र जीवों से परिगृहीत भी होते हैं, अपरिगृहीत भी और उभयरूप भी होते हैं, इसलिए इनकी योनि तीनों प्रकार की होती है। गर्भज तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों और गर्भज मनुष्यों की जहाँ उत्पत्ति होती है, वहाँ अचित्त शुक्र-शोणित आदि पुद्गल भी होते हैं, अतएव वे मिश्र योनि वाले हैं। ___सचित्तादि योनियों की अपेक्षा से जीवों का अल्पबहुत्व—सबसे थोड़े जीव मिश्रयोनिक इसलिए बताए गए हैं कि मिश्रयोनिकों में केवल गर्भज तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय और गर्भज मनुष्य ही हैं। उनसे अचित्तयोनिक जीव असंख्यांतगुणे अधिक हैं, क्योंकि समस्त देव, नारक तथा कतिपय पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, प्रत्येकवनस्पतिकायिक, द्वि-त्रि-चतुरिन्द्रियजीव, सम्मूछिम तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय एवं सम्मूच्छिम मनुष्य अचित्त योनि वाले होते हैं। अचित्तयोनिकों की अपेक्षा अयोनिक (सिद्ध) जीव अनन्त हैं, क्योंकि सिद्ध अनन्त हैं और अयोनिकों की अपेक्षा भी सचित्तयोनिक जीव अनन्तगुणे अधिक हैं, क्योंकि निगोद के जीव सचित्तयोनिक होते हैं और वे सिद्धों से भी अनन्तगुणे अधिक होते हैं। सर्वजीवों में संवृतादि त्रिविध योनियों की प्ररूपणा
७६४. कतिविहा णं भंते! जोणी पण्णत्ता ?
गोयमा! तिविहा जोणी पण्णत्ता। तं जहा—संवुडा जोणी १ वियडा जोणी २ संवुडवियडा जोणी ३।
१. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक २२६-२२७