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[प्रज्ञापना सूत्र
७५७. एवं जाव थणियकुमाराणं। [७५७] इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक की योनि के विषय में समझना चाहिए। ७५८. पुढविकाइयाणं भंते! किं सचित्ता जोणी अचित्ता जोणी मीसिया जोणी ? गोयमा! सचित्ता वि जोणी, अचित्ता वि जोणी, मीसिया वि जोणी।
[७५८ प्र.] भगवन्! पृथ्वीकायिक जीवों की क्या सचित्त योनि है, अचित्त होती है अथवा मिश्र योनि होती है?
[७५८ उ.] गौतम! उनकी योनि सचित्त भी होती है, अचित्त भी होती है और मिश्र योनि भी होती है। ७५९. एवं जाव चरिंदियाणं । [७५९] इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय जीवों तक (की योनि के विषय में समझना चाहिए। ) ७६०. सम्मुच्छिमपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं सम्मुच्छिममणुस्साण य एवं चेव ।
[७६०] सम्मूछिम पंचेन्द्रिय तिर्यचयोनिकों एवं सम्मूछिम मनुष्यों की योनि के विषय में इसी प्रकार समझ लेना चाहिए।
७६१. गब्भवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं गब्भवक्कंतियमणुस्साण य नो सचित्ता, नो अचित्ता, मीसिया जोणी।
[७६१] गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों तथा गर्भज मनुष्यों की योनि न तो सचित्त होती है और न ही अचित्त, किन्तु मिश्र योनि होती है।
७६२. वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियाणं जहा असुरकुमाराणं।
[७६२] वाणव्यन्तर देवों, ज्योतिष्क देवों एवं वैमानिक देवों (की योनि की विषय में) असुरकुमारों के (योनिविषयक वर्णन के) समान ही (समझना चाहिए।) ।
७६३. एतेसि णं भंते! जीवाणं सचित्तजोणीणं अचित्तजोणीणं मीसजोणीणं अजोणीण य . कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?
गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा मीसजोणिया, अचित्तजोणिया असंखेन्जगुणा, अजोणिया अणंतगुणा सचित्तजोणिया अणंतगुणा॥२॥
[७६३ प्र.] भगवन् ! इन सचित्तयोनिक जीवों, अचित्तयोनिक जीवों, मिश्रयोनिक जीवों तथा अयोनिक में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक होते हैं ?
[७६३ उ.] गौतम! मिश्रयोनिक जीव सबसे थोड़े होते हैं, (उनसे) अचित्तयोनिक जीव असंख्यातगुणे अधिक हैं, (उनसे) अयोनिक जीव अनन्तगुणे होते हैं [और उनसे भी] सचित्तयोनिक जीव अनन्तगुणे होते हैं ॥ २॥