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________________ नौवाँ योनिपद ] [५४३ सम्मूच्छिम तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय और सम्मूछिम मनुष्यों के उत्पत्तिस्थान शीतस्पर्श वाले, उष्णस्पर्श वाले और शीतोष्णस्पर्श वाले होते हैं, इस कारण उनकी योनि तीनों प्रकार की बताई गई है। त्रिविध योनि वालों और अयोनिकों का अल्पबहुत्व —सबसे थोड़े जीव शीतोष्ण योनि वाले होते हैं, क्योंकि शीतोष्ण योनि वाले सिर्फ भवनपति देव, गर्भज तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय, गर्भज मनुष्य व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव ही हैं। उनसे असंख्यातगुणे उष्णयोनिक जीव हैं, क्योंकि सभी सूक्ष्मबादरभेदयुक्त तेजस्कायिक, अधिकांश नैरयिक, कतिपय पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, वायुकायिक तथा प्रत्येक वनस्पतिकायिक उष्णयोनिक होते हैं। उनकी अपेक्षा अयोनिक (योनिरहित -सिद्ध) जीव अनन्तगुणे होते हैं, क्योंकि सिद्ध जीव अनन्त हैं। इनकी अपेक्षा शीतयोनिक अनन्तगुणे होते हैं, क्योंकि सभी अनन्तकायिक जीव शीत योनि वाले होते हैं और वे सिद्धों से भी अनन्तगुणे हैं। नैरयिकादि में सचित्तादि त्रिविध योनिकों की प्ररूपणा ७५४. कतिविहा णं भंते ! जोणी पण्णत्ता ? गोयमा! तिविहा जोणी पण्णत्ता। तं जहा–सचित्ता १ अचित्ता २ मीसिया ३। [७५४ प्र.] भगवन् ! योनि कितने प्रकार की कही गई है ? [७५४ उ.] गौतम! योनि तीन प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार -(१) सचित्त योनि, (२) अचित्त योनि (३) मिश्र योनि। ७५५. नेरइयाणं भंते! किं सचित्ता जोणी अचित्ता जोणी मीसिया जोणी ? गोयमा! नो सचित्ता जोणी, अचित्ता जोणी, णो मीसिया जोणी। [७५५ प्र.] भगवन् ! नैरयिकों की क्या सचित्त योनि है, अचित्त योनि है अथवा मिश्र योनि होती है । [७५५ उ.] गौतम! नारकों की योनि सचित्त नहीं होती है, अचित्त योनि होती है, (किन्तु) मिश्र योनि नहीं होती। ७५६. असुरकुमाराणं भंते! किं सचित्ता जोणी अचित्ता जोणी मीसिया जोणी ? गोयमा! नो सचित्ता जोणी, अचित्ता जोणी, नो मीसिया जोणी। [७५६ प्र.] भगवन् ! असुरकुमारों की योनि क्या सचित्त होती है, अचित्त होती है अथवा मिश्र योनि होती है ? [७५६ उ.] गौतम! उनके सचित्त योनि नहीं होती, अचित्त योनि होती है, (किन्तु) मिश्र योनि नहीं होती। १. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक २२५-२२६
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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