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[प्रज्ञापना सूत्र योनि और उसके प्रकारों की व्याख्या-'योनि' शब्द 'यू मिश्रणे' धातु से निष्पन्न हुआ है, जिसका व्युत्पत्यर्थ होता है जिसमें मिश्रण होता है, वह योनि है। इसकी शास्त्रीय परिभाषा है—तैजस और कार्मण शरीर वाले प्राणी, जिसमें औदारिक आदि शरीरों के योग्य पुद्गलस्कन्धों के समुदाय के साथ मिश्रित होते हैं, वह योनि है। योनि से यहाँ तात्पर्य है -जीवों का उत्पत्तिस्थान । शीत योनि का अर्थ है -जो योनि शीतस्पर्श-परिणाम वाली हो। उष्ण योनि का अर्थ है -जो योनि उष्णस्पर्श परिणाम वाली हो। शीतोष्ण योनि का अर्थ है जो योनि शीत और उष्ण उभय स्पर्श के परिणाम वाली हो।
सप्त नरकपृथ्वियों की योनि का विचार –यों तो सामान्यतया नैरयिकों की दो ही योनियां बताई हैं —शीत योनि और उष्ण योनि, तीसरी शीतोष्ण योनि उनके नहीं होती। किस नरकपृथ्वी में कौन-सी योनि है? यह वृत्तिकार बताते हैं –रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा और बालुकाप्रभा में नारकों के जो उपपात (उत्पत्ति) क्षेत्र हैं, वे सब शीतस्पर्श परिणाम से परिणत हैं। इन उपपातक्षेत्रों के सिवाय इन तीनों पृथ्वियों में शेष स्थान उष्णस्पर्श परिणामपरिणत हैं। इस कारण यहाँ के शीत योनि वाले नैरयिक उष्णवेदना का वेदन करते हैं। पंकप्रभापृथ्वी में अधिकांश उपपातक्षेत्र शीतस्पर्श-परिणाम से परिणत हैं, थोडे-से ऐसे क्षेत्र हैं जो उष्णस्पर्श-परिणाम से परिणत हैं। जिन प्रस्तटों (पाथड़ों) और नारकावासों में शीतस्पर्शपरिणाम वाले उपपातक्षेत्र हैं उनमें उन क्षेत्रों के अतिरिक्त शेष समस्त स्थान उष्णस्पर्शपरिणाम वाले होते हैं तथा जिन प्रस्तटों और नारकावासों में उष्णस्पर्शपरिणाम वाले उपपातक्षेत्र हैं उनमें उनके अतिरिक्त अन्य सब स्थान शीतस्पर्शपरिणाम वाले होते हैं। इस कारण वहाँ के बहुत से शीतयोनिक नैरयिक उष्णवेदना का वेदन करते हैं, जबकि थोड़े से उष्णयोनिक नैरयिक शीतवेदना का वेदन करते हैं। धूमप्रभापृथ्वी में बहुत से उपपातक्षेत्र उष्णस्पर्श परिणाम से परिणत हैं, थोड़े से क्षेत्र शीतस्पर्शपरिणाम से परिणत होते हैं। जिन प्रस्तटों और जिन नारकावासों में उष्ण स्पर्शपरिणाम-परिणत उपपातक्षेत्र हैं, उनमें उनके अतिरिक्त अन्य सब स्थान शीतपरिणाम वाले होते हैं। जिन प्रस्तटों या नारकावासों में शीतस्पर्शपरिणाम-परिणत उपपातक्षेत्र हैं, उनमें उनसे अतिरिक्त अन्य सब स्थान उष्णस्पर्शपरिणाम वाले हैं। इस कारण वहाँ के बहुत से उष्णयोनिक नैरयिक शीत वेदना का वेदन करते हैं, थोड़े-से जो शीतयोनिक हैं, वे उष्णवेदना का वेदन करते हैं। तमःप्रभा और तमस्तमःप्रभा पृथ्वी में सभी उपपातक्षेत्र उष्णस्पर्शपरिणाम-परिणम हैं। उनसे अतिरिक्त अन्य सब स्थान वहाँ शीतस्पर्शपरिणाम वाले हैं। इस कारण वहाँ के उष्णयोनिक नारक शीतवेदना का वेदन करते हैं।
___ भवनवासी देव आदि की योनियां शीतोष्ण क्यों ? –सर्वप्रकार के भवनवासी देव, गर्भज, तिर्यंच पंचेन्द्रिय, गर्भज मनुष्य तथा व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के उपपातक्षेत्र शीत और उष्ण, दोनों स्पर्शों से परिणत हैं, इस कारण उनकी योनियां शीत और उष्ण दोनों स्वभाव वाली(शीतोष्ण) हैं।
तेजस्कायिकों के सिवाय पृथ्वीकायिकों आदि की तीनों प्रकार की योनि -तेजस्कायिक उष्णयोनिक ही होते हैं, यह बात प्रत्यक्षसिद्ध है। उनके सिवाय अन्य समस्त एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय