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________________ ५३२] [प्रज्ञापना सूत्र ७२८. एवं ज़ाव थणियकुमाराणं। [७२८] इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार देवों तक (में पाई जाने वाली संज्ञाओं के विषय में) कहना चाहिए। ७२९. एवं पुढविकाइयाणं वेमाणियावसाणाणं णेयव्वं। [७२९] इसी प्रकार पृथ्वीकायिकों से लेकर वैमानिक-पर्यन्त (में पाई जाने वाली संज्ञाओं के विषय में) समझ लेना चाहिए। विवेचन—नैरयिकों से वैमानिकों तक में संज्ञाओं की प्ररूपणा–प्रस्तुत चार सूत्रों में नैरयिकों से लेकर वैमानिक देवों तक में दसों संज्ञाओं में से पाई जाने वाली संज्ञाओं की प्ररूपणा की गई है। सामान्यरूप से चौबीस दण्डकवर्ती समस्त सांसारिक जीवों में प्रत्येक में दसों ही संज्ञाएँ पाई जाती हैं। एकेन्द्रिय जीवों में ये संज्ञाएँ अव्यक्तरूप से रहती हैं, जबकि पंचेन्द्रियों में ये स्पष्टतः जानी जाती हैं। यहाँ ये संज्ञाएँ प्रायः पंचेन्द्रियों को लेकर बताई गई हैं। नारकों में संज्ञाओं का विचार ७३०. नेरइया णं भंते! किं आहारसण्णेवउत्ता भयसण्णोवउत्ता मेहुणसण्णोवउत्ता परिग्गहसण्णोउवत्ता ? गोयमा! ओसण्णं कारणं पडुच्च भयसण्णोवउत्ता, संतइभावं पडुच्च आहारसण्णोवउत्ता वि जाव परिग्गहसण्णोवउत्ता वि। [७३० प्र.] भगवन् ! नैरयिक क्या आहारसंज्ञोपयुक्त (आहारसंज्ञा से युक्त सम्पन्न) हैं, भयसंज्ञा से उपयुक्त हैं, मैथुनसंज्ञोपयुक्त हैं अथवा परिग्रहसंज्ञोपयुक्त हैं ? [७३० उ.] गौतम! उत्सनकारण (बहुलता से बाह्य कारण की अपेक्षा से वे भयसंज्ञा से उपयुक्त हैं,) किन्तु संततिभाव (आन्तरिक सातत्य अनुभवरूप भाव) की अपेक्षा से (वे) आहारसंज्ञोपयुक्त भी हैं यावत् परिग्रहसंज्ञोपयुक्त भी है। ____७३१. एतेसि णं भंते! नेरइयाणं आहारसण्णोवउत्ताणं भयसण्णोवउत्ताणं मेहुणसण्णोवउत्ताणं परिग्गहसण्णोवउत्ताणं य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा! सव्वत्थोवा नेरइया मेहुणसण्णोवउत्ता, आहारसण्णोवउत्ता संखेजगुणा, परिग्गहसण्णोवउत्ता संखेजगुणा, भयसण्णोवउत्ता संखेजगुणा। [७३१ प्र.] भगवन् ! इन आहारसंज्ञोपयुक्त, भयसंज्ञोपयुक्त, मैथुनसंज्ञोपयुक्त एवं परिग्रहसंज्ञोपयुक्त नारकों में से कौन-किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? १. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक २२३
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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