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________________ ५१८] [प्रज्ञापना सूत्र रस, स्पर्श, उपघात, दुःस्वर, अनादेय, अयश:कीर्ति आदि नामकर्म हैं । अतः अनुभावनाम के साथ निधत्त आयु 'अनुभावनामनिधत्तायु' कहलाती है। प्रस्तुत में आयुकर्म की प्रधानता प्रकट करने के लिए जाति, गति, स्थिति, अवगाहना नामकर्म आदि को आयु के विशेषण के रूप में कहा है। नारक आदि की आयु का उदय होने पर ही जाति आदि नामकर्मों का उदय होता है। अन्यथा नहीं, अतएव आयु की ही यहाँ प्रधानता है। आकर्ष का स्वरूप आकर्ष कहते हैं-विशेष प्रकार के प्रयत्न से जीव द्वारा होने वाले कर्मपुद्गलों के उपादान-ग्रहण को। प्रस्तुत सूत्रों (सू. ६८७ से ६९० तक) में इस विषय की चर्चा की गई है कि जीवसामान्य तथा नारक से लेकर वैमानिक तक कितने आकर्षों यानी प्रयत्नविशेषों से जातिनामनिधत्तायु आदि षड्विध आयुष्यकर्म-पुद्गलों का ग्रहण, बन्ध करने हेतु करते हैं ? उदाहरणार्थ-जैसे-कई गायें एक ही चूंट में पर्याप्त जल पी लेती हैं, कई भय के कारण रुक-रुक कर दो, तीन या चार अथवा सात-आठ चूंटों में जल पीती हैं। उसी प्रकार कई जीव उन-उन जातिनाम आदि से निधत्त आयुकर्म के (बन्धहेतु) पुद्गलों का तीव्र अध्यवसायवश एक ही मन्द आकर्ष में ग्रहण कर लेते हैं, दूसरे दो या तीन मन्दतर आकर्षों में या चार या पांच मन्दतम आकर्षों में या फिर छह, सात या आठ अत्यन्त मन्दतम आकर्षों में ग्रहण करते हैं। यहाँ यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि आयु के साथ बंधने वाले जाति आदि नामों (नामकर्मों) में ही आकर्ष का नियम है; शेष काल में नहीं। कई प्रकृतियाँ 'ध्रुवबन्धिनी' होती हैं और कई 'परावर्तमान' होती हैं। उनका बहुत काल तक बन्ध सम्भव होने से उनमें आकर्षों का नियम नहीं है। आकर्ष करने वाले जीवों का तारतम्य - बन्ध के हेतु आयुष्यकर्मपुद्गलों का ग्रहण अधिकसे-अधिक आठ आकर्षों में करने वाले जीव सबसे कम हैं, उनसे क्रमशः कम आकर्ष करने वाले जीव उत्तरोत्तर संख्यातगुणे अधिक हैं, सबसे अधिक जीव एक आकर्ष करने वाले हैं। ॥ प्रज्ञापनासूत्रः छठा व्युत्क्रान्तिपद समाप्त ॥ १. प्रज्ञापना मलय. वृत्ति, पत्रांक २१७-२१८ २. प्रज्ञापना मलय. वृत्ति, पत्रांक २१८ ३. पण्णवणासुत्तं भा. २, छठे पद की प्रस्तावना, पृ. ७४
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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