________________
५१६ ]
[ प्रज्ञापना सूत्र
६८९. एवं जाव वेमाणिया ।
[६८९] इसी प्रकार (आगे असुरकुमारों से लेकर) यावत् वैमानिक तक ( के जातिनामनिधत्तायु की आकर्ष - संख्या का कथन करना चाहिए ।)
६९०. एवं गतिणामणिहत्ताउए वि ठितीणामनिहत्ताउए वि ओगाहणाणामनिहत्ताउए वि पदेसणामनिहत्ताउए वि अणुभावणामनिहत्ताउए वि ।
[६९०] इसी प्रकार (समस्त जीव) गतिनामनिधत्तायु, स्थितिनामनिधत्तायु, अवगाहनानामनिधत्ता, प्रदेशनामनिधत्तायु और अनुभावनामनिधत्तायु का (बन्ध) भी जघन्य एक, दो या तीन अथवा उत्कृष्ट आठ आकर्षों से करते हैं ।
६९१. एतेसि णं भंते! जीवाणं जातिनामनिहत्ताउयं जहणणेणं एक्केण वा दोहिं वा तीहिंवा उक्कोसेणं अट्ठहिं आगरिसेहिं पकरेमाणाणं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वातुल्ला वा विसेसाहिया वा ?
गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा जातिणामणिहत्ताउयं अट्ठहिं आगरिसेहिं पकरेमाणा, सत्तहिं आगरिसेहिं पकरेमाणा संखेज्जगुणा, छहिं आगरिसेहिं पकरेमाणा संखेज्जगुणा, एवं पंचहिं संखेज्जगुणा, चउहिं संखेज्जगुणा, तिहिं संखेज्जगुणा, दोहिं संखेज्जगुणा, एगेणं आगरिसेणं पगरेमाणा संखेज्जगुणा ।
[६९१ प्र.] भगवन्! इन जीवों में जघन्य एक, दो और तीन, अथवा उत्कृष्ट आठ आंकर्षों से बन्ध करने वालों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ?
[६९१ उ.] गौतम! सबसे कम जीव जातिनामनिधत्तायु को आठ आकर्षों से बांधने वाले हैं, सात आकर्षों से बांधने वाले ( इनसे) संख्यातगुणे हैं, छह आकर्षों से बांधने वाले (इनसे) संख्यातगुणे हैं, इसी प्रकार पांच (आकर्षों से बांधने वाले इनसे) संख्यातगुणे हैं, चार ( आकर्षों से बांधने वाले इनसे) संख्यातगुणे हैं, तीन (आकर्षों से बांधने वाले इनसे) संख्यातगुणे हैं, दो (आकर्षों से बांधने वाले इनसे ) संख्यातगुणे हैं और एक आकर्ष से बांधने वाले, ( इनसे भी) संख्यातगुणे हैं।
६९२. एवं एतेणं अभिलावेणं जाव अणुभावनिहत्ताउयं । एवं एते छ प्पि य अप्पाबहुदंडगा जीवादीया भाणियव्वा । दारं ८ ॥
॥ पण्णवणाए भगवईए छट्ठे वक्कंतिपयं समत्तं ॥
[६९२] इसी प्रकार इस अभिलाप से ( ऐसा ही अल्पबहुत्व का कथन ) गतिनामनिधत्तायु, स्थितिनामनिधत्तायु, अवगाहनानामनिधत्तायु, प्रदेशनामनिधत्तायु और यावत् अनुभावनामनिधत्तायु को बांधने वालों का (जान लेना चाहिए ।) इस प्रकार ये छहों ही अल्पबहुत्वसम्बन्धी दण्डक जीव से आरम्भ करके कहने चाहिए । आठवां आकर्षद्वार ॥ ८ ॥