________________
छठा व्युत्क्रान्तिपद ]
[५१५
अष्टम आकर्षद्वार : सर्वजीवों के षड्विध आयुष्यबन्ध, उनके आकर्षों की संख्या और अल्पबहुत्व
६८४. कतिविधे णं भंते! आउयबंधे पण्णत्ते ?
गोयमा ! छव्विधे आउयबंधे पण्णत्ते । तं जहा - जातिणामणिहत्ताउए १ गइनामनिहत्ताउए २ ठितीनामनिहत्ताउए ३ ओगाहणाणामणिहत्ताउए ४ पदेसणामणिहत्ताउए ५ अणुभावणामणिहत्ताउए ६ । [६८४ प्र.] भगवन्! आयुष्य का बन्ध कितने प्रकार का कहा है ?
[६८४ उ.] गौतम! आयुष्यबन्ध छह प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है - ( १ ) जातिनामनिधत्तायु, (२) गतिनामनिधत्तायु, (३) स्थितिनामनिधत्तायु, (४) अवगाहनानामनिधत्तायु, (५) प्रदेशनामनिधत्तायु और (६) अनुभावनामनिधत्तायु ।
६८५. नेरइयाणं भंते! कतिविहे आउयबंधे पण्णत्ते ?
गोयमा ! छव्विहे आउयबंधे पण्णत्ते । तं जहा - जातिनामनिहत्ताउए १ गतिणामनिहत्ताउए २ ठितीणामणिहत्ताउए ३ ओगाहणानामनिहत्ताउए ४ पदेसणामनिहत्ताउए ५ अणुभावनामनिहत्ताउए ६ ।
[६८५ प्र.] भगवन्! नैरयिकों का आयुष्यबन्ध कितने प्रकार का कहा है ?
[ ६८५ उ.] गौतम ! (नैरयिकों का) आयुष्यबन्ध छह प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार(१) जातिनामनिधत्तायु, (२) गतिनामनिधत्तायु, (३) स्थितिनामनिधत्तायु, (४) अवगाहनानामनिधत्तायु, (५) प्रदेशनामनिधत्तायु और (६) अनुभावनामनिधत्तायु ।
६८६. एवं जाव वेमाणियाणं ।
[६८६] इसी प्रकार (आगे असुरकुमारों से लेकर) यावत् वैमानिकों तक के आयुष्यबन्ध की प्ररूपणा समझनी चाहिए ।
६८७. जीवा णं भंते! जातिणामणिहत्ताउयं कतिहिं आगरिसेहिं पकरेंति ?
गोयमा ! जहणेणं एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा, उक्कोसेणं अट्ठहिं ।
[६८७ प्र.] भगवन्! जीव जातिनामनिधत्तायु को कितने आकर्षो से बांधते हैं ?
[ ६८७ उ.] गौतम! ( जीव जातिनामनिधत्तायु को) जघन्य एक, दो या तीन अथवा उत्कृष्ट आठ आकर्षो से बांधते हैं ।
६८८. नेरइया णं भंते! जाइनामनिहत्ताउयं कतिहिं आगरिसेहिं पकरेंति ? गोमा ! जहणेणं एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा, उक्कोसेणं अट्ठहिं ।
[६८८ प्र.] भगवन् ! नारक जातिनामनिधत्तायु को कितने आकर्षों से बांधते हैं ?
[ ६८८ उ.] गौतम! (नारक जातिनामनिधत्तायु को ) जघन्य एक, दो या तीन, अथवा उत्कृष्ट आठ आकर्षों से बांधते हैं ।