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[प्रज्ञापना सूत्र
सम्बन्धी आयु का कितनाभाग शेष रहते अथवा आयुष्य का कितना भाग बीत जाने पर अगले जन्म (आगामी-परभव) की आयु का बन्ध करते हैं ? यही बताना इस द्वार का आशय है।
सोपक्रम और निरुपक्रम की व्याख्या—जो आयु उपक्रमयुक्त हो, वह सोपक्रम कहलाती है और जो आयु उपक्रम से प्रभावित न हो सके वह निरुपक्रम कहलाती है। आयु का विघात करने वाले तीव्र विष, शस्त्र, अग्नि, जल आदि उपक्रम कहलाते हैं। इन उपक्रमों के योग से दीर्घकाल में धीरे-धीरे भोगी जाने वाली आयु बन्धकालीन स्थिति से पहले (शीघ्र) ही भोग ली जाती है। अर्थात् इन उपक्रमों के निमित्त से जो आयु बीच में ही टूट जाती है, जिस आयु का भोगकाल बन्धकालीन स्थितिमर्यादा से कम हो, उसे अकालमृत्यु, सोपक्रम आयु अथवा अपवर्तनीय आयु भी कहते हैं। जो आयु बन्धकालीन स्थिति के पूर्ण होने से पहले न भोगी जा सके, अर्थात्-जिसका भोगकाल बन्धकालीन स्थिति मर्यादा के समान हो, वह निरुपक्रम या अनपवर्तनीय आयु कहलाती है। औपपातिक (नारक और देव), चरमशरीरी, उत्तमपुरुष और असंख्यातवर्षजीवी (मनुष्य-तिर्यञ्च)', ये अनपवर्तनीय-निरुपक्रम आयु वाले होते हैं।
निष्कर्ष-निरुपक्रमी जीवों में औपपातिक और असंख्यातवर्षजीवी अनपवर्तनीय आयु वाले होते हैं। वे आयुष्य के ६ मास शेष रहते आगामी भव का आयुष्यबन्ध करते हैं, जैसे-नैरयिक, सब प्रकार के देव और असंख्यातवर्षजीवी मनुष्य-तिर्यञ्च। पृथ्वीकायिकादि से लेकर मनुष्यों तक दोनों ही प्रकार की आयु वाले होते हैं। इनमें जो निरुपक्रम आयु वाले होते हैं, वे आयु (स्थिति) के दो भाग व्यतीत हो जाने पर और तीसरा भाग शेष रहने पर आगामी भव का आयष्य बांधते हैं. किन्त जो सोपक्रम आय वाले हैं वे कदाचित् वर्तमान आयु का तीसरा भाग शेष रहने पर परभव की आयु का बन्ध करते हैं, किन्तुं यह नियम नहीं है कि वे तीसरा भाग शेष रहते परभव का आयुष्यबन्ध कर ही लें। अतएव जो जीव उस समय आयुबध नहीं करते, वे अवशिष्ट तीसरे भाग के तीन भागों में से दो भाग व्यतीत हो जाने पर और एक भाग शेष रह जाने पर आयु का बन्ध करते हैं। कदाचित् इस तीसरे भाग में भी पारभविक आयु का बन्ध न हुआ तो शेष आयु का तीसरा भाग शेष रहते आयु का बन्ध करते हैं । अर्थात् आयु के तीसरे भाग के तीसरे भाग के तीसरे भाग में आयुष्यबन्ध करते हैं। कोई-कोई विद्वान् इसका अर्थ यो करते हैं कि कभी आयु का नौवां भाग शेष रहने पर अथवा कभी आयु का सत्ताईसवां भाग शेष रहने पर सोपक्रम आयु वाले जीव आगामी भव का आयुष्य बांधते हैं।
१. (क) प्रज्ञापनासूत्र, प्रमेयबोधिनी टीका भा. २, पृ. ११४२-११४३ (ख) तत्त्वार्थसूत्र (विवेचन, पं. सुखलाल जी, नवसंस्करण) 'औपपातिकचरमदेहोत्तमपुरुषोऽसंख्येयवर्षायुषोऽनपवर्त्यायुषः।' २, २५
-तत्त्वार्थसूत्र अ. २, सू. ५२ पर विवेचन। पृ. ७९-८० (ग) श्री पन्नवणासूत्र के थोकड़े, प्रथम भाग, पृ. १५० (घ) 'कभी-कभी अपनी आयु के २७ वें भाग का तीसरा भाग यानी ८१ वां भाग शेष रहने पर, कभी ८१ वें भाग का
तीसरा भाग यानी २४३ वां भाग और कभी २४३ वें भाग का तीसरा भाग यानी ७२९ वां भाग शेष रहने पर यावत् अन्तर्मुहूर्त शेष रहने पर परभव की आयु बांधते हैं।' –किन्हीं आचार्यो का मत
-श्री पन्नवणासूत्र के थोकड़े, प्रथमभाग पृ. १५०, प्रज्ञापना प्र. बो. टीका भा. २, पृ. ११४४-४५