SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 614
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छठा व्युत्क्रान्तिपद ] [५१३ ६८०. आउ-तेउ-वाउ-वणप्फइकाइयाणं बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिं दियाण वि एवं चेव। [६८०] अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिकों तथा द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियों (के पारभविक-आयुष्यबन्ध) का कथन भी इसी प्रकार (करना चाहिए)। ६८१. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते! कतिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति ? गोयमा! पंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पन्नत्ता। तं जहा-संखेन्जवासाउया य असंखेजवासाउया य। तत्थ णं जे ते असंखेज्जवासाउया ते नियमा छम्मासावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति। तत्थ णं जे ते संखेन्जवासाउया ते दुविहा पण्णत्ता। तं जहा-सोवक्कमाउया य निरुवक्कमाउया य। तत्थ णं जे ते निरुवक्कमाउया ते णियमा तिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति। तत्थ णं जे ते सोवक्कमाउया ते णं सिय तिभागे परभवियाउयं पकरेंति, सिय तिभागतिभागे य परभवियाउयं पकरेंति, सिय तिभागतिभागतिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति। [६८१ प्र.] भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक, आयुष्य का कितना भाग शेष रहने पर परभव की आयु का बन्ध करते हैं ? [६८१ उ.] गौतम! पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार-(१) संख्यातवर्षायुष्क और (२) असंख्यातवर्षायुष्क। उनमें से जो असंख्यात वर्ष की आयु वाले हैं, वे नियम से छह मास आयु शेष रहते परभव का आयुष्यबन्ध कर लेते हैं और जो इनमें संख्यातवर्ष की आयु वाले हैं, वे दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं-(१) सोपक्रम आयु वाले और (२) निरुपक्रम आयु वाले। इनमें जो निरुपक्रम आयु वाले हैं, वे नियमतः आयु का तीसरा भाग शेष रहने पर परभव का आयुष्यबन्ध करते हैं। जो सोपक्रम आयुवाले हैं, वे कदाचित् आयुष्य का तीसरा भाग शेष रहते पारभविक आयुष्यबन्ध करते हैं, कदाचित् आयु के तीसरे भाग का तीसरा भाग शेष रहते परभव का आयुष्यबन्ध करते हैं और कदाचित् आयु के तीसरे भाग का तीसरा भाग शेष रहते पारभविक आयुबन्ध करते हैं। ६८२. एवं मणूसा वि। [६८२] मनुष्यों का (पारभविक आयुष्यबन्ध सम्बन्धी कथन भी) इसी प्रकार (करना चाहिए।) ६८३. वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा नेरइया ॥ दारं ७॥ __ [६८३] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों (के परभव का आयुष्यबन्ध) नैरयिकों के (पारभविक आयुष्यबन्ध के) समान (छह मास शेष रहने पर) कहना चाहिए। - सप्तम पारभविकायुष्यद्वार ॥७॥ विवेचन–सप्तम पारभविकायुष्यद्वार : चातुर्गतिक जीवों की पारभविक आयुष्यबन्ध-सम्बन्धी प्ररूपणा-नरकादि चारों गतियों के जीवों की आयु का कितना भाग शेष रहते परभवसंबंधी आयुष्य बन्ध होता है? इस विषय में प्रस्तुत सात सूत्रों (सू. ६७७ से ६८३ तक) में प्ररूपणा की गई है। पारभविकायुष्यद्वार का तात्पर्य-वर्तमान भव में नारकादिपर्याय वाले जीव अपने वर्तमान भव
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy