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________________ ५१२] [ प्रज्ञापना सूत्र तथा तेजस्कायिक- वायुकायिकों का केवल तिर्यञ्चगति में ही होता है । तिर्यंचचपंचेन्द्रियों का उत्पाद नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य एवं देवगति में, विशेषत: सहस्त्रारकल्पर्यन्त के वैमानिकों में होता है। मनुष्यों का उत्पाद चारों गतियों के सभी स्थानों में होता है तथा सनत्कुमार से लेकर सहस्त्रार देव पर्यन्त वैमानिक देवों का उत्पाद गर्भज संख्यातवर्षायुष्क तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों एवं मनुष्यों में होता है, और आनत कल्प से लेकर सर्वार्थसिद्धि तक के देवों का उत्पाद गर्भज संख्यातवर्षायुष्क मनुष्यों में ही होता है । १ सप्तम पारभविकायुष्यद्वार: चातुर्गतिक जीवों की पारभविकायुष्यसम्बन्धी प्ररूपणा ६७७. नेरइया णं भंते! कतिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति ? गोयमा ! णियमा छम्मासावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति । [६७७ प्र.] भगवन्! आयुष्क का कितना भाग शेष रहने पर नैरयिक परभव (आगामी जन्म) की आयु (का बन्ध) करते हैं ? [६७७ उ.] गौतम! (वे) नियम से छह मास आयु शेष रहने पर परभव की आयु बांधते हैं । ६७८. एवं असुरकुमारा वि जाव थणियकुमारा । [६७८] इसी प्रकार असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक ( का पारभविक - आयुष्यबन्ध सम्बन्धी कथन करना चाहिए । ) ६७९. पुढविकाइया णं भंते! कतिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति ? गोमा ! पुढविकाया दुविहा पण्णत्ता । तं जहा- सोवक्कमाउया य निरुवक्कमाउयाय । त्य णं जे ते निरुवक्कमाउया ते णियमा तिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति । तत्थ णं जे ते सोवक्कमाउया ते सिय तिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति, सिय तिभागतिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति, सिय तिभागतिभागतिभागसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति । [६७९ प्र.] भगवन्! पृथ्वीकायिक जीव आयुष्य का कितना भाग शेष रहने पर परभव का आयुष्य बांधते हैं ? [६७९ उ.] गौतम! पृथ्वीकायिक जीव दो प्रकार के कहे गए है, वे इस प्रकार है - ( १ ) सोपक्रम आयु वाले और (२) निरुपक्रम आयु वाले । इनमें से जो निरुपक्रम ( उपक्रमरहित) आयु वाले हैं, वे नियम से आयुष्य का तीसरा भाग शेष रहने पर परभव की आयु का बन्ध करते हैं तथा इनमें जो सोपक्रम (उपक्रमसहित) आयु वाले हैं, वे कदाचित् आयु का तीसरा भाग शेष रहने पर परभव का आयुष्यबन्ध करते हैं, कदाचित् आयु के तीसरे भाग का तीसरा भाग शेष रहने पर परभव का आयुष्यबन्ध करते हैं और कदाचित् आयु के तीसरे भाग के तीसरे भाग का तीसरा भाग शेष रहने पर परभव का आयुष्यबन्ध करते हैं। १. (क) प्रज्ञापनासूत्र प्रमेयबोधिनी टीका भा. २, पृ. ११०९ (ख) प्रज्ञापनासूत्र म. वृत्ति, पत्रांक २१६
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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