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[प्रज्ञापना सूत्र
विशेषतया अकर्मभूमिज, अन्तीपज और असंख्यात वर्षायुष्क मनुष्यों में भी ये उत्पन्न होते हैं, यह कहना चाहिए।
[७] जति देवेसु उववजंति किं भवणवतीसु उववजंति ? जाव किं वेमाणिएसु उववजंति ? गोयमा! सव्वेसु चेव उववति।
[६७२-७ प्र.] (भगवन् !) यदि (वे) देवों में उत्पन्न होते हैं तो क्या भवनपति देवों में उत्पन्न होते हैं ? (अथवा) यावत् वैमानिक में भी उत्पन्न होते हैं ?
[६७२-७ उ.] गौतम! (वे) सभी (प्रकार के) देवों में उत्पन्न होते हैं।
[८] जति भवणवतीसु उववज्जति किं असुरकुमारेसु उववजंति ? जाव थणियकुमारेसु उववजंति ?
गोयमा! सव्वेसु चेव उववजंति।
[६७२-८ प्र.] (भगवन्!) यदि (वे) भवनपति देवों में उत्पन्न होते हैं तो क्या असुरकुमारों में उत्पन्न होते हैं? (अथवा) यावत् स्तनित्कुमारों में उत्पन्न होते हैं?
[६७२-८ उ.] गौतम! (वे) सभी (भवनपतियों ) में उत्पन्न होते हैं। ... [९] एवं वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएसु निरंतरं उववजंति जाव सहस्सारो कप्पो त्ति।
[६७२-९] इसी प्रकार वाणव्यन्तरों, ज्योतिष्कों और सहस्नारकल्प तक के वैमानिक देवों में निरन्तर उत्पन्न होते हैं।
६७३. [१] मणुस्सा णं भंते ! अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति ? कहिं उववजंति ? किं नेरइएसु उववज्जति जाव देवेसु उववजंति ? .
गोयमा! नेरइएसु वि उववजंति जाव देवेसु वि उववति ।
[६७३-१ प्र.] (भगवन्!) मनुष्य अनन्तर उद्वर्तन करके कहाँ जाते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं ? (अथवा) यावत् देवों में भी उत्पन्न होते हैं ? ।
[६७३-१ उ.] गौतम ! (वे) नैरयिकों में भी उत्पन्न होते हैं, यावत् देवों में भी उत्पन्न होते हैं। [२] एवं निरंतरं सव्वेसु ठाणेसु पुच्छा।।
गोयमा! सव्वेसु ठाणेसु उववजंति, णं कहिंचि पडिसेहो कायव्वो जाव सव्वट्ठसिद्धदेवेसु वि उववजंति, अत्यंगतिया सिझंति बुझंति मुच्चंति परिणिव्वायंति सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति।
[६७३-२ प्र.] भगवन् ! क्या (मनुष्य) नैरयिक आदि सभी स्थानों में उत्पन्न होते हैं ?
[६७३-२ उ.] गौतम! वे (इन) सभी स्थानों में उत्पन्न होते हैं, कहीं भी इनके उत्पन्न होने का निषेध नहीं करना चाहिए; यावत् सर्वार्थसिद्ध देवों तक में भी (मनुष्य) उत्पन्न होते हैं और कई मनुष्य